SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vol. XXVII, 2004 बौद्ध प्रव्रज्या-उपसम्पदा ..... 105 भिक्षुणी उपसंपदा : बुद्ध के समय में कुछ श्रमण सम्प्रदायों में स्त्रीयों को प्रव्रज्या दी जाती थी। निग्रंथ श्रमण संप्रदायो मे यह प्रथा प्रचलित थी। महावीर वर्धमान उसी संप्रदाय के थे और वे स्त्रीयों को दीक्षा देते थे। किन्तु बुद्धने प्रारंभ में स्त्रीयों को दीक्षा देने की अनुमती नही दी थी। अपनी मौसी और मा महाप्रजापति गौतमीने प्रवज्जा के लिए बुद्ध को तीन तीन बार विनति की थी किन्तु उन्हों ने उसका स्वीकार नहीं किया था। अंत में शाक्य स्त्री-समुदाय मुंडन करवा के कसाय वस्त्र धारण कर चौथी बार बुद्ध के पास आने पर आनंद ने भगवान बुद्ध को विनति की, तब बुद्धने स्त्री-प्रव्रज्जा की अनुमति दी । (महापजायतीगोतमीवत्थु, चुल्लवग्ग) विधि : इस नाम वाली शिक्षामाणा को इस विशेष नाम वाली आर्या के उपाध्यायत्व में उपसम्पदा की आज्ञा प्रदान करें । यह ज्ञप्ति होती थी। इसके बाद तीन बार अनुश्रावण होता था । अर्थात् उसी बात को संघ के समक्ष तीन बार दोहराया जाता । यदि संघ मौन धारण किये रहता था अर्थात् शिक्षामणा के बारे में संघ को कोई शिकायत नहीं होती थी तो वह समझा जाता था कि संघ को इसका उपसंपन्न होना स्वीकर है । इसके बाद वह शिक्षामाणा भिक्षुसंघ मे लायी जाती थी तथा भिक्षुणी-संघ में सम्पन्न हुई सारी कार्यवाहियाँ पुनः दुहरायी जाती थीं । यदि धारणा के समय भिक्षु-संघ मौन धारण किया रहता था तो वह शिक्षामाणा तुरन्त बौद्धसंघ में उपसंपन्न कर ली जाती थी (चुल्लवग्ग, नालंदा, पृ. ३९३-३९५; भिश्रुणी विनय) भिक्षुणी-संघ की स्थापना के समय प्रव्रज्या और उपसंपदा में इस प्रकार का विभाजन नहीं था। ये दोनों एक साथ ही संम्पन्न हो जाती थीं । महाप्रजापती गौतमी तथा उसके साथ की शाक्य नारियों को प्रव्रज्या तथा उपसंपदा अष्टगुरुधर्मों को स्वीकार कर लेने पर ही हो गई थी । सम्भवतः संघ में नारियों की बढती हुई संख्या को देखकर तथा अयोग्य नारियों को रोकने के लिए इस नियम में परिवर्तन करके प्रव्रज्या तथा उपसंपदा में भेद कर दिया गया होगा । __ भिक्षुणियों की उपसम्पदा अट्ठवाचिनी उपसम्पदा कही जाती थी क्योंकि उनके सन्दर्भ में 'जत्तिचतुत्थकम्म' का पालन दो बार होता - पहले भिक्षुणी-संघ में तत्पश्चात् भिक्षुसंघ मे होता था । एक ज्ञप्ति तथा तीन अनुश्रावण को उत्तिचतुत्थकम्म कहा जाता था । (समनन्तपासादिका, भाग -३, पृ. १५१४) स्त्री-प्रव्रज्या की अनुमति देने पर भी बुद्धने आठ शर्ते रखी थी। जिस से प्रतीत होता है कि बुद्ध ने स्त्रीयों को पुरुष समकक्ष नहीं माना । ये आठ नियम हैं - १. भिक्षुणियों ने छोटे बडे सब भिक्षुओं को वंदन करना चाहिए । २. जिस गाँव में भिक्षु न हो वहाँ भिक्षुणि को नहीं रहना चाहिए । ३. हर पखवाडे में उपोसथ कौन से दिन होता है और उपदेश श्रवण के लिए कब आना होगा इन दो बातें भिक्षुणी ने भिक्षुसंघ को पूछना चाहिए । ४. वर्षा के बाद भिक्षुणीने भिक्षुसंघ और भिक्षुणीसंघ की प्रवारणा (संतोष प्रदान करने की विधि) करनी चाहिए । ५. जिस क्षिभुणीने संघादिशेषदोष किया हो उसे भिक्षुसंघ और भिक्षुणीसंघ से मानत्त (प्रायश्चित, तपस्या) लेना चाहिए । ६. दो साल शिक्षा लेने पर श्रामणेरी को दोनों संघो के उपसम्पदा मिलनी चाहिए । ७. भिक्षुणीने कभी भिक्षु को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए । ८. भिक्षणोने
SR No.520777
Book TitleSambodhi 2004 Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy