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Vol. XXVI, 2003
कर्मयोग के द्वारा कर्मबन्धन का अभाव होता है। अत: अखिल ब्रह्मांड के लिए एक कर्मयोगी व्यक्ति के रूप में सूर्य ही सब से बड़ा एवं सर्वप्रथम नित्य दीप्तिमन्त उदाहरण है ! वेद साहित्य में इसी सूर्यदेवता के लिए "विष्णु" शब्द का प्रयोग हुआ है । 'विष्णु' उसी को कहते हैं, जो व्यापनशील है। उदित होते ही सूर्य त्रिभुवन में (पृथिवी, अन्तरिक्ष एवं धुलोक में) व्याप्त हो जाता है । इसी लिए वेद में, विष्णु को 'त्रिविक्रम' भी कहा गया है। उनके उदित होने के साथ ही कमल इत्यादि पुष्पों का विकास होता है और सृष्टि की शोभा (लक्ष्मी) बढती है। इसके प्रवर्तन से ही दिवस-रात एवम् संवत्सर होते हैं । इस तरह से सूर्य कालचक्र का स्वरूप भी धारण करता है।
इन सभी वेदोक्त बातें ध्यान में लेकर ही पुराणकाल में, चतुर्भुज भगवान् विष्णु के हाथ में शङ्ख, चक्र, गदा एवं पद्म जैसे आयुधादि के चिह्न अङ्कित किये गये हैं । वेद में "विष्णु' अर्थात् सूर्यदेवता है । अतः विष्णु के एक हाथ में सुदर्शनचक्र रखा गया है, जो कालचक्र का प्रतीक है। पृथिवी पर विकसित होनेवाले कमल का सूर्योदय के साथ शाश्वत सम्बन्ध है। अतः विष्णु के दूसरे हाथ में कमल रखा गया है। जिससे यह सूचित होता है कि यह विष्णु देवता मूल में तो सूर्यदेवता ही है । (विष्णु की पत्नी लक्ष्मी बताई जाती है, वह मूल में तो कमल की ही शोभा है !)
परन्तु महाभारत के रचनाकाल के बाद यदु श्रेष्ठ वासुदेव श्रीकृष्णने जो जीवन यापन किया है और अर्जुन को 'लोकसंग्रह' का विचार दिया है, उसे देखकर पुराणकाल में विष्णु के तीसरे हाथ में 'शङ्ख' एवं चतुर्थ हस्त में 'गदा' को भी स्थान दिया गया हो यह सम्भवित है। पुरुषोत्तम परमात्मा यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् कह कर, आश्वासन देते हैं कि वे बार बार अवतरित होंगे - ऐसा वचन देकर उन्होंने अवतारवाद का शङ्ख फूंक दिया है और परित्राणाय साधूनाम्, विनाशाय च दुष्कृताम् के शुभ आशय से, दुष्टों के विनाश के लिए ही उन्होंने 'गदा' को धारण किया है ! - यह गर्भित बात चतुर्भुज विष्णु के दर्शन करते समय हरेक भक्त के चित्त में साक्षात् होनी चाहिए। इस तरह से आज के भगवान् विष्णु वेदकाल के सूर्यदेवता भी हैं; और महाभारत काल के श्रीकृष्ण भी हैं !! कर्मयोगी सूर्य एवं लोकसंग्रहकारी श्रीकृष्ण - इन दोनों का जो चतुर्भुज विष्णुभगवान् के श्रीविग्रह में अभेद प्रकट किया गया है - वह हमारे लिए नित्य प्रेरणादायी है; वंदनीय भी है।
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