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सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
मुरजताल कंशाल तूर त्रंबक सहनाईय मधुर वेणु डप चंग तवल मुहचंग त्रिघाईय । सारंगी वरवीन त्रिमुख अलिगुंज नफेरीय झल्लर झंझ पिनाक ढोल ढोलक गुरु भेरीय ॥ कहि मांन ओंकि ॐ शंखधुनि घंट त्रिघंट बजंत लघु संगीतनृत्य वाजित्र युत नृतत सुरीसुर जिनसमुख ॥ ९॥
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इति श्रीमन्मानकविरचितं द्वात्रिंशद्बद्धनृत्यसूचितं श्री जिनसंगीताष्टकं संपूर्णम् ॥
श्रीपूज्य श्री १०८ श्री भीमसागरसूरिवरेन्द्राणां ज्येष्ठ शिष्य ऋषि श्रीपुष्करजी वाचना - पठनार्थम् । सं. १७६४ ज्येष्ठ १५ ज्ञे श्रीउदयपुरमध्ये ॥
SAMBODHI
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