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________________ 148 To मुकुल राज महेता SAMBODHI दोषी व्यक्ति को उसके दोष के अनुसार कुछ समय तक संसर्ग से दूर रखना ही ८. परिहार “परिहार” कहलाता है। ९. उपस्थापन - • अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि व्रतों के भंग हो जाने के कारण पुनः उन्हीं महाव्रतों का परिपालन " उपस्थापन' कहा जाता है । विनय जैन दार्शनिकों ने विनय शब्द का सम्बन्ध हृदय से लगाया है। यह उसका आत्मिकगुण है । जैन साहित्य में विनय शब्द तीन में प्रयुक्त हुआ है १. विनय - अनुशासन २. विनय ३. विनय नम्रता एवं सद्व्यवहार स्थानांग वृत्ति में आचार्य अभयदेव ने स्पष्ट किया है कि जिससे आठ कर्म का विनय (विनयदूर होना) होता है अर्थात् विनय आठों कर्मों को दूर करता है; उससे चार गति का अन्त होकर मोक्ष गति प्राप्त होती है । ५० - - - Jain Education International आत्म संयम - शील- सदाचार -- प्रवचनसार वृत्ति में लिखा गया है- “विनपति क्लेशकारकमष्टप्रकारं कर्म इति विनयः ) ” क्लेश पैदा करनेवाले अष्टकर्म शत्रुओं को जो दूर करे, वह विनय है । भगवती आदि आगम साहित्य में ज्ञानविनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय, मन विनय, काय विनय और लोकोपचार विनय आदि सात प्रकार के विनय हैं । ११ विनय यद्यपि गुणरूप से एक ही है फिर भी उसके भेद केवल विनय की दृष्टि से ही किये गये हैं । वे चार प्रकार के हैं १. ज्ञान विनय २. दर्शन विनय ३. चारित्र्य विनय ४. उपचार विनय ५२ ― १. ज्ञानविनय • ज्ञान प्राप्त करना तथा प्राप्त ज्ञान का बार-बार अभ्यास करना जिससे वह ज्ञान भूल न जाय, “ज्ञान विनय" कहलाता है । - २. दर्शन विनय - तत्त्व की यथार्थ प्रतीति स्वरूप सम्यक् दर्शन से चलित न होना, उसमें होनेवाली शंकाओं को संशोधित कर निश्चल व शुद्ध भाव से साधना करना " दर्शन विनय" क 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520775
Book TitleSambodhi 2002 Vol 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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