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________________ डॉ. के. आर. चन्द्र SAMBOIH ___ उपरोक्त चर्चित ८ पद्यों के संशोधित पाठ (भाषिक, छन्द और अर्थ की उपयुक्तता की दृष्टि से प्राचीन पाठ) इस प्रकार होने चाहिए थे जो कालान्तर में बदलते गये हैं। १. एस करेमि पणामं, तित्थयराणं अणुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं, सिद्धाणं संजमाणं च ॥ (महाप. पद्य नं. १) २. सव्वदुक्खप्पहीणाणं, सिद्धाणं अरहतो नमो। सद्दहे जिणपन्नत्तं, पच्चक्खामि य पावगं ॥ (महाप. पद्य नं. २) ३. जं किंचि वि दुच्चरियं, तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं, करेमि सव्वं निरागारं ॥ (महाप. पद्य नं. ३) ४. बाहिरऽबभंतरं ओवहिं, सरीरादिं च भोयणं । मणसा वयकाएण, सव्वं तिविहेण वोसरे ॥ (महाप. पद्य नं. ४, किंचित् संशोधित पाठ) ५. रागं बंधं पदोसं च हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं, रतिमरतिं च वोसरे ॥ (महाप. पद्य नं. ५, किंचित् संशोधित पाठ) ६. निंदामि निंदणिजं, गरहामि य जं च मे गरहणीयं । आलोचेमि य सव्वं, जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं ॥ (महाप. पद्य नं. ८, किंचित् संशोधित पाठ) ७. जं मे जाणंति जिणा अवराहे जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएतुं उवट्टितो सव्वभावेण ॥ (महाप. पद्य नं. २०, किंचित् संशोधित पाठ) ८. किं पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण । परलोइयं न सक्कइ साहेउं अप्पणो अटुं॥ (महाप. पद्य नं. ८२, किंचित् संशोधित पाठ) ___ इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी पद्य में 'मूलाचार' का पाठ छन्द और अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है तो कहीं पर 'मूलाचार' और 'नियमसार' के पाठ परवर्तीकाल के प्रतीत होते हैं। इसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520774
Book TitleSambodhi 2001 Vol 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages162
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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