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Vol. XXIV, 2001
पडिक्कमो' पाठ भाषा की दृष्टि से अस्पष्ट है और सही नहीं लगता ।
भाषिक दृष्टि से 'अणगारसहायगेण' पाठ 'अणगारसहायएण' पाठ से, 'अन्नोन्न' - पाठ 'अण्णोपण-' पाठ से, ' - संगहबलेण' पाठ 'संगहबलेणं' पाठ से तथा 'न' पाठ 'ण' पाठ से प्राचीन हैं ।
श्वेताम्बर अर्धमागधी आगमों के अन्तर्गत प्रकीर्णकों...
की दृष्टि से 'महा' के पद्य नं. ८० से ८४ तक 'आत्मार्थसाधना' के लिए सर्वत्र 'अप्पणो अहं' पाठ मिलता है अतः 'निशीथसूत्र - भाष्य' का 'उत्तिमो अट्ठो' पाठ परवर्ती प्रतीत होता है और व्याकरण की दृष्टि से यहाँ पर 'उत्तिमं अट्ठ' होना चाहिए था ।
'महाप.' में 'न' शब्द का अभाव है जो अर्थ की दृष्टि से आवश्यक लगता है ।
'महाप. ' के 'परलोएणं' और 'आराधनापताका' के 'परलोइए' पाठों के बदले में 'परलोइयं' पाठ ‘अप्पणो अट्ठे' के साथ उपयुक्त ठहरता है । अतः इस पद्य का पाठ मूलतः इस प्रकार रहा होगा जो परवर्ती काल में विविध ग्रंथों में बदलता गया है ।
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किं पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण । परलोइयं न सक्कड़ साहेउं अप्पणो अहं ॥
'महापच्चक्खाण-पइण्णयं' के उपरोक्त पद्यों के समीक्षात्मक अध्ययन से निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हो रहा है कि 'महाप. ' का पद्य नं. १ सही है जबकि 'मूलाचार' का पद्य छन्द और अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। 'महाप.' के पद्य नं. २ में 'अरहओ' पाठ है जबकि 'मूलाचार' में 'अरहदो' पाठ है
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इससे ऐसा लगता है कि मूलपाठ 'अरहतो' होगा जो कहीं पर 'अरहओ' और कहीं पर 'अरहदो ' हो गया है।
'महाप. ' के पद्य नं. ३ का पाठ सही एवं प्राचीन है। 'नियमसार' और 'मूलाचार' के पाठ परवर्ती काल a. प्रतीत होते हैं ।
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'महाप.' के पद्य नं. ४ को सुधारने में 'मूलाचार' का पाठ सहायक बन रहा है ।
'महाप.' के पद्य नं. ६ के पाठ को सुधारने में भी 'मूलाचार' का पाठ सहायक बन रहा है । 'महाप. पद्य ८ के पाठ को भी सुधारने में 'मूलाचार' का पाठ सहायक बन रहा है । 'महाप.' के पद्य नं. २० के पाठ को सुधारने में 'निशीथसूत्र - भाष्य' के पाठ से सहायता मिलती है । 'महाप.' के पद्य नं. ८२ को सुधारने में 'आराधनापताका' का पाठ और 'निशीथसूत्र - भाष्य' का पाठ सहायक बनता है ।
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