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VoLXXIV,2001 श्वेताम्बर अर्धमागधी आगमों के अन्तर्गत प्रकीर्णकों...
11 विपरीत किसी पद्य में 'मूलाचार' के पद्य का पाठ प्राचीन लगता है तो किसी पद्य में 'महाप.' के पाठ सुधारने में 'मूलाचार', 'निशीथसूत्र-भाष्य' और 'आराधनापताका' के पाठों से सहायता मिलती है। अतः अमुक सम्प्रदाय के ग्रंथों में से अमुक संप्रदाय के ग्रंथों में पद्य लिए गए हैं ऐसा मानना उपयुक्त नहीं है। वास्तविक रूप में ऐसा प्रतीत होता है कि मौखिक परंपरा से चले आ रहे पद्यों की मूल भाषा कुछ और ही थी परंतु बाद में परवर्तीकाल में अलग अलग सम्प्रदायों के पाठों में भाषिक परिवर्तन आते गये ऐसा मानना समीचीन होगा। किसी एक सम्प्रदाय के ग्रंथों के पद्य प्राचीन हैं और उनमें से किसी अन्य सम्प्रदाय ने उन पद्यों को अपनाया है ऐसा कहना उचित प्रतीत नहीं होता है। दोनों ही सम्प्रदायों ने परंपरा से चले आये प्राचीन पद्यों को अपने अपने ढंग से अपने अपने ग्रंथों में अपनाये हैं ऐसा मानना अधिक उचित होगा।
* आगम संस्थान ग्रन्थमाला-७, आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, १९९१-९२ के द्वारा
प्रकाशित इस ग्रंथ में अन्य ग्रंथों में उपलब्ध गाथाओं के पाठ भी दिये गये हैं और उन पाठों की ही यहाँ पर ।
चर्चा की जा रही है। + जो जो वर्ण निम्न पद्यों में गहरे काले टाईप में बताये गये हैं वे ‘महापच्चक्खाणप्रकीर्णक' में मुद्रित पाठों से भिन्न ___एवं संशोधित पाठ हैं।
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