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________________ पारुल मांकड SAMBODHI णमह अवट्ठिअतुझं अविसारिअविस्यअअणोणअअं गहिरम् । अप्पलहुपरिसण्हं अण्णाअपरमत्थपाअडं महुमहणम् ॥ (सेतु. १/१) नमत अवस्थिततुङ्गमविसारिताविस्तृतमनवनगतगभीरम् । अप्रलघुमपरिश्लक्ष्णमज्ञातपरमार्थपारदं मधुमथनम् ॥ (स. कं. पृ. ३१९) भोजदेव ने इस पद्य में स्वाभाविकत्वयुक्त विभावनालंकार माना है। मधुमथन भगवान विष्णु को लक्षित करके (कविने) तुङ्गत्व, प्रवृद्धत्व इत्यादि प्रसिद्ध हेतु का व्यावर्तन किया है । हेतुओं का स्वाभाविकत्व है। यह 'चित्रा' नामक स्वाभाविकत्व को विभावित करती 'विभावना' है। (पृ. ३२०) रामदास भूपति ने भी प्रस्तुत पद्य में विभावनालंकार ही घोषित किया है। किन्तु, उसका नाम 'विरोधाभासमूला विभावना' दिया गया है, अपने समर्थन में रामदास दण्डी का हवाला भी पेश करते हैं। - प्रसिद्धहेतुव्यावृत्त्या. इत्यादि (का. द. २/१९९). तथा च तुङ्गत्वे कार्ये वर्धितत्वरूपप्रसिद्धहेतुव्यावृत्त्या तत्स्वभावत्वं विभोरवगम्यते । - (पृ. ३) अज्ञातकर्तृक सेतुतत्त्वचन्द्रिका' भी भगवान के स्वाभाविकत्व की विभावना का निर्देश करती है, यथा - ... वर्धितत्वादिप्रसिद्धहेतुव्यावृत्त्यापि भगवति तुङ्गत्वादिकं यदायाति तत् सर्वं स्वाभाविकमेव विभाव्यमिति [वि]भावनाख्योऽलङ्कारः । (पृ. १) कृष्णविप्र नामक टीकाकार स.कं.का हवाला देते हैं - एतेभ्यो मधुमथनस्वरूपस्य व्यतिरेक उक्त इति स्वाभाविकविभावनाख्यश्चायमलङ्कार तथा सरस्वतीकण्ठाभरणे समर्थितम् । (प्रा. हेन्दक्वी, पृ. १७३) ण कओ वाहविमुक्खो० ११/६६ तथा णवरि अ पसारिअङ्गी० ११/६८ (पृ. ६४ पर छाया) प्रस्तुत पद्यो में करुणरस की अभिव्यक्ति है। सा.मी.कारने ण कओ. इत्यादि पद्य में 'प्रलय' अवस्था दर्शाई है। सात्त्विक गुणों की चर्चा में सा.मी. कार इसके स्तम्भादि भेद बताते हैं। सीता की मूर्छावस्था के कारण सर्व अंगो का प्रलय लीनता है। णवरि. को भोज करुण रस के उदाहरणरूप ही मानते हैं। (स. के. पृ. ६३१) तं दइआहिणाणं जग्मि वि अङ्गम्मि राहवेण ण णिमिअम् । सीसापरिमट्टेण व ऊढो तेण वि णिरन्तरं रोमञ्चो ॥ (सेतु. १/४२) - (स. कं. पृ. ५४१)
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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