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________________ Vol. XXIII, 2000 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपय उद्धरण... जह जह णिसा सम्प्पइ तह तह वेवितरङ्गपडिमापडिअम । किंकाअव्वविमूढं वेवइ हिअअं व्व उअहिणो ससिबिम्बम् ॥ (सेतु० ६/१०, स. कं. पृ. ५१६) यथा यथा निशा समाप्यते तथा तथा वेपमानतरङ्गप्रतिमापनितम् । किंकर्तव्यविमूढं वेपते हृदयमिवो दधेः शशिबिम्बम् ॥ [भारतीय विद्याप्रकाश - सेतु. में द्वितीय पंक्ति में घोडइ पाठ है। डॉ. बसाक संपादित आवृत्ति में घोलइ पाठ है, तथा पडिअम् के बदले वडिअं पाठ है।] प्रस्तुत पद्य में भोज ने क्रियापरिकर माना है। अत्र 'यथा तथा' इति क्रियाविशेषणयोरपरमपि विशेषणं वीप्सा भवति । सोऽयमेवंप्रकारः क्रियापरिकरो दृष्टव्यः । (पृ. ५१६) रामदास भूपतिने उत्प्रेक्षा माना है। तन्मया किंकर्तव्यमिति कर्तव्यतामूढमित्युत्प्रेक्षा । (पृ. ११३) समुद्र जैसे किंकर्तव्यतासे मूढ सा हो रहा है - इस तरह समुद्र में मूढत्व की उत्प्रेक्षा है। साहित्यमीमांसा (सा. मी.) जिसका कर्तृत्व अनिश्चित है१२, सेतुबन्ध के सात पद्य उसमें उद्धृत है। अकारादि क्रम से 'ज' के अन्तर्गत एक पद्य सा.मी. (पृ. १४९) में भी उद्धृत है। जस्सविलक्कगं तिणहं पुणपडिसद्दानि सामुहपलिक्खालिआ। जोहाकल्लोला विअ ससिधवलासु रअणीसु हसिहच्छेआ ॥ (सेतु. १/७) रामदास भूपति की टीकावाली आवृत्ति में प्रस्तुत पद्य का पाठान्तर इस प्रकार मिलता है । देखें - जस्स विलग्गन्ति णहं फुडपडिसद्दा दिसाअलपडिक्खलिआ । जोण्हाकल्लोला विअ ससिधवलासु रअणीसु१३ हसिअच्छेआ ॥ (सेतु. १/७) यस्य विलगन्ति नभः स्फुटप्रतिशब्दा दिक्तलप्रतिस्खलिताः । ज्योत्स्नाकल्लोला इव शशिधवलासु रजनीषु हसितच्छेदाः ॥ सा.मी. कार प्रस्तुत पद्य कविसमय का निरूपण करते हुए “यशोहासगतं शौकल्यं' - यश और हास में शुक्लता का निरूपण करना चाहिए ऐसा प्रतिपादित करतें हैं। रामदास भूपति प्रस्तुत पद्य में उत्प्रेक्षामूला सहोपमा मानते हैं। ज्योत्स्नाकल्लोला इवेति सहोपमा वा । यथा ते दिक्तलस्खलिता इव नभो विलगन्ति तथैतेऽपीत्युत्प्रेक्षामूलम् ॥ (पृ. ८)
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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