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Vol XXII, 1998
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तिग-जोगिण जणु रजतियाठ
नच्चति वरत्ता-सठियाठ ॥ ९ बाहूरूय-कर-चलण-पमुहगाइ अणेग-भगेहिं ।
कुव्वता मल्ला निय-निय-विन्नाणाई पयडेंति ॥ निज्जुद्ध-जुद्ध-कुसला अन्ने अन्नोन्नमगसधीओ। यलेंति सव्वति य पुणो वि कय करणयाइ सया ॥ केवि पुण मुट्ठिमाला परोप्पर मुट्ठि-पहरण-पसत्ता ।
वंचति मुष्टि-पहारे करण-विसेसेहि उल्ललिलं ॥ १० केवि पुण विहिय-पडिमुह-कारिम-बहुदत वाल-नह-नियरा ।
दसति पेरणाइ बहुणि जणजणिय-चोज्जाइ ॥ नच्चता गायता कुणति तह विविह-वयण-चेष्टाओ । जेण हसावति जय पि सुगत्तं पयसता ॥
११ कहगा कहेंति बहुविह कहाओ तह विविह-हावभावेहिं ।
जह चित्तालिहिओ इव उवउत्त-मणोजणो सुणइ ॥ वज्जिस्मद्दलिया रणझणत-कसालिया-रख-मिसेण । के वि हु दूर-गयाण वि जणाण कुव्वति आहवण ॥ तयणतरमाढत्त तरतरा-रुइर-ठाणय-पबधा ।
गायता गीयाइ कवति पुट्विाल्ल्-चरिपाइ । १२ श्रीमदावश्यक सूत्र, पूर्व विभाग, भद्रबाहुस्वामि नियुक्ति, हरिभद्रसूरि वृत्ति. प्रका. आगमोदय समिति, सूरत १९१६,
पृ. ३४९ १३ लंखा उण चडिवि महत-वसि
बहु-पव्वरमि गयणावयंसि अकिलेसिण किरिणा विचित्त देंति
कुभार-चक्कु जिम्ब पुणु फिरत ॥ १४ नरजुयल-पाणि-सपुड-उद्धीकय गरुयवस सिहरमि ।
ठविऊण कट्ठफलय तत्थ दो कीलगे निसिठ ॥ त मूलमि य दो पाठयाओ ठविकण गयणमुप्पइठ । किरणप्पओगओ पाठयासुपाए परिटुवइ ॥ जइ पुण कहमवि चुकेइ पाठयाण तओ स सहसत्ति सयखंडी होइ पडेऊणं विस्सभरावीठे ॥