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________________ Vol XXII, 1998 "शाकुन्तल" के विदूषक की उक्तियाँ.. 151 टिप्पणो The paper was awarded the "DR. V Raghavan Prize", in the classical Sanskrit section of the 36th Session of the All India Oriental Conference, May 28-30, 1993, Poona १ प्रस्तुत लेख में इन्हीं आवृत्तियों का पृष्ठाक दिया है। २ मोनीयर वीलीयम्स ने जो सामग्री का उपयोग किया है (दष्टव्य . प्रस्तावना, पृ. 1) उसमें बगाली पाण्डुलिपि भी है, और राघवभट्ट की व्याख्या का समावेश नहीं है। ३ डॉ. बेलवेलकरजीने कौन सी पाण्डुलिपियाँ का उपयोग किया था ? वह इस सम्पादन के प्रकाशक डॉ. वी. राघवन के द्वारा भी अज्ञेय रहा है। (द्रष्टव्य : Preface, p m) ४ द्रष्टव्य • New Catalogus Catalogorum, Vol ONE, (Revised Edition, University of Madras, 1969, (pp 281-287) ५ कतिपय विद्वान उसे पृथक्वाचना नहीं मानते है। परतु उसका बंगाली वाचना में ही समावेश होता है ऐसा कहना ६ यह सुविदित है कि संस्कृत नाट्यसाहित्य के रीकाकारों ने श्लोकों के शब्दार्थ, अन्वय और सन्धिसन्ध्यङ्गादि का विवरण करने के साथ साथ विदूषकादि नीच पात्रों की प्रत्येक प्राकृत उक्तियाँ का सस्कृत छायानुवाद भी दिया है। अत. वह उक्तियाँ हमारे लिए पाण्डुलिपि की तरह उपादेय है। ७ केवल विदूषक की उक्तियाँ इसलिए ली जाती है कि प्रस्तुत अभ्यासलेख अनतिविस्तृत बना रहे । ८ A SANSKRIT-ENGLISH DICTIONARY - By Monier Williams (Berkeley, 1976) में (page 193) बताया है कि यह उन्दुर / उन्दुरु शब्द केवल केशग्रन्थों में मिलता है, अन्य कोई सस्कृत ग्रन्थ में उसका प्रयोग नहीं हुआ है। See "The Original Śakuntala”, in the Sir Ashutosh Mookerjee Silver Jubilee Volumes m, Orientalia, part-2, (pp 344-59) Calcutta, 1925 १० यह दूसरे पक्ष को स्वीकार किया जाय तो "The Vidusaka" byG K Bhat (New Order Book Co, Ahmedabad, 1959) में शाकुन्तल के विदूषक का जो पात्रचित्रण किया गया है वह भी विपरीत हो जायेगा। इति दिक् ॥
SR No.520772
Book TitleSambodhi 1998 Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages279
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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