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वसन्सकुमार म भट्ट
SAMBODHI
अभिज्ञानशा(शकुन्तलम् -कालिदास का स्वहस्तलेख
+ (अनेकानेक प्रतिलिपियाँ)
'क्ष' ( अज्ञात दो प्रवाह ) 'ज्ञ'
'य'२ (संमिश्रण)
यह
मैथिली बगाली
मैथिली वाचन
बगाली वाचना (चन्द्र
टीकाकार शेखर
देवनागरी वाचना
दाक्षिणात्य वाचना
काश्मीरी शकर वाचना टीकाकार
नरहरि .
"की टीका
अप्रकाशित
१०
टीकाकार राघवभट्ट
चर्चा
अभिराम टीकाकार
काट्यवेम टीकाकार
घनश्याम टीकाकार
श्रीनिवास टीकाकार
टीका
यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि १, २, ३, ४, ५, ६ - में 'अभिज्ञानशाकुन्तल' का (कुल मिला के प्रायः १९४ श्लोकवाला) लघुसंस्करण स्वीकृत है; और ७, ८, ९, एवं १० में 'अभिज्ञानशाकुन्तल' का (कुल मिलाके प्रायः २२१ श्लोकों वाला) बृहत्संस्करण स्वीकृत है ॥
३. डॉ. एस. के. बेलवेलकरजी की उक्ति "The final text naturally belongs to no particular recension" का स्मरण करके उपर्युक्त पाठान्तरों का सिंहावलोकन करेंगे, तो सत्र रूप से यह कहना होगा कि - ११ का 'अयं शार्दूलः', १.२ का 'ममोदरस्य', १५ का 'स्त्रीरत्नपरिभाविनः', १६ का 'कृतं त्वयोपवनं', १.७ का 'बिन्दुरपि' एवं १.८ का 'वीतरागस्येव' वाले पाठान्तरों जो देवनागरी एव दाक्षिणात्य वाचनाओं का है (जिसको कुत्रचित् काश्मीरी वाचना का भी समर्थन है) उन्हें बंगाली वाचना के 'शकुन्तल' में कटाक्ष, हास्य इत्यादि से रहित बनाया गया है। अथवा, मूलतः बंगाली वाचना के यह सरल, कटाक्ष एवं हास्य निरपेक्ष वाक्यों । शब्दों को देवनागरी एव दाक्षिणात्य वाचनाओं में ले जाकर कटाक्ष इत्यादि से परिवर्तित या प्रक्षिप्त करके बडे चोटदार बनाये गये है ॥