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________________ 143 Vol XXII, 1998 "शाकुन्तल" के विदूषक की उक्तियाँ . वाला पाठ बदल दिया होगा । जो बंगाली वाचना में प्रतिबिम्बित हुआ है । ] ४ मृगया के लिए प्रोत्साहन देनेवाले सेनापति पर क्रुद्ध होता हुआ विदूषक बोलता है कि A जाव सिआलमिअलोलुवस्य कस्स वि जुण्णरिच्छस्स मुहे णिवडिदो होसि । पिशेल, पृ. ( यावत् शृगालमृगलोलुपस्य कस्यापि जीर्णक्षस्य मुखे निपतितः भवसि) B यावत् शृगाललोलुपस्य कस्यापि जीर्णभल्लूकस्य मुखे निपतितोऽसीति । शंकर, पृ. १९७ _____C यावन्नासिकाया लोलुपस्य कस्यापि जीर्णक्षस्य मुखे न निपतितो भवसीति । नरहरि, पृ. ३१३. D यावत्सीमाशृगाल इव जीर्णक्षस्य मुखे । काश्मीरी, पृ. ३१ E नरमासलोलुपस्य कस्यापि जीर्णऋक्षस्य मुखे निपतिष्यसि । - काट्यवेम, पृ. ४०. F आहिण्ड्य गत्वा, तीक्ष्णर्भस्य क्रूरभल्लूकस्य । पतितो भवेति शपनम् । - चर्चा, पृ. ९१. G. मुखे पतितोऽसि, जीर्णऋक्षस्ते नासा भक्षयति इति भावः । - अभिराम, पृ. ८४ H ...इदानीं नासिकामांसलोलुपस्य कस्यापि जीर्णऋक्षस्य मुखे पतितो भवसि । - घनश्याम, ११० I नरनासिकालोलुपस्येति स्वभावोक्तिः । जीर्णऋक्षस्य वृद्धभल्लूकस्य कस्यापि मुखे पतसि पतिष्यसि । - राघवभट्ट, पृ. १४२. J. जीर्णऋक्षस्य वृद्धभल्लूकस्य । - श्रीनिवास पृ. १४२ यहाँ पर बंगाली इत्यादि सभी वाचनाओं में 'जीर्णयस्य' ऐसा पाठ है । परंतु मैथिलीवाचना का अनुसरण करनेवाला टीकाकार शङ्कर ने 'जीर्णभल्लूकस्य' ऐसा पाठान्तर दिया है, जिसमें 'ऋक्ष्य' के लिए मिथिलाप्रान्त - बिहार - में प्रयुक्त होनेवाला 'भल्लूक' शब्द स्वीकारा है। संभव है कि विदूषक की उक्तियाँ प्राकृत में उच्चरित होती थी, तो जहाँ पर यह शाकुन्तल खेला गया होगा, वहाँ की प्रादेशिक बोली के अनुसार यह शब्द रखा गया होगा । दूसरा यहाँ जो बंगाली वाचना में 'शृगालमृगलोलुपस्य' ऐसा पाठ है, उसके स्थान पर अंशतः परिवर्तनवाले अनेक पाठान्तर मिलते है । लेकिन यहाँ पर जो 'नरमांसलोलपस्य' या 'नरनासिकामासलोलपस्य' ऐसा पाठान्तर दिखाई देते है, वह प्रसङ्लोचित लगते है । क्रुद्ध होकर ब्राह्मण विदूषक आखेट की स्तुति करनेवाले सेनापति को यही शाप दे वह अधिक उचित है । एवमेव यह दूसरा पाठान्तर देवनागरी एवं दाक्षिणात्य दोनों वाचनाओं में प्रचलित है, अधिक व्याख्याकारों के द्वारा स्वीकृत है।
SR No.520772
Book TitleSambodhi 1998 Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages279
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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