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142 वसन्तकुमार म. भट्ट
SAMBODHI का ही आम जनता के साथ संबध होता है, और लोकानुरञ्जन कराने के लिए:
गे-और नोटामाअन कराने के लिए मनुधार के पास उसकी उक्तियों में प्रक्षेप या परिवर्तन की अधिकतर सम्भावना रहती है।
३ द्वितीय अङ्क की इसी लंबी उक्ति में विदूषक और भी एक वाक्य बोलता है, जिसमें रगक्षमता बढाने के लिए कुछ पाठपरिवर्तन हुआ है ऐसा स्पष्टरूप से दिखाई पड़ता है । जैसे कि
A एसो बाणासणहत्थो हिअअणिहिदपिअअणो वणपुष्फमालाधारी इदो ज्जेव आअच्छदि पिअवअस्सो । (एषः बाणासनहस्तो हृदयनिहितप्रियजनः वनपुष्पमालाधारी इतः एव आगच्छति । - पिशेल, पृ. ११७.
B एष बाणासनहस्तः .हृदयनिहितप्रियजनः पुष्पमालाधारी इत एवागच्छति प्रियवयस्यः । - शंकर, १९४
C. एष बाणासनहस्तो ह्रदयविनिहितप्रियतमो वनपुष्पमालाधारी इत एवागच्छति प्रियवयस्यः । नरहरि, पृ. ३१२ __D एष राजा बाणासनहस्ताभिर्यवनीभिः परिवृतो वनपुष्पमालाधारी इत एवागच्छति । - काश्मीरी, २७
__E एष बाणासनहस्ताभिः वनपुष्पमालाधारिणीभिः यवनीभिः परिवृत इत एवागच्छति..। काट्यवेम, ३४
F यवनिकाभिः परिवृतः इत्यनेन । चर्चा, पृ. ८२
G यवनिकाभिः आसन्नपरिचारिकाभिः । वनपुष्पमालाधारिणीभिरिति देशौचित्यात् । अभिराम, पृ. ७२.
H एष बाणासनहस्ताभिर्यवनीभिर् वनपुष्पमालाधारिणीभिः परिवृतः इत.।- घनश्याम, पृ. १०४
I एष बाणासन धनुर्हस्ते यासा ताभिर्वनपुष्पमालाधारिणीभिरिति यवनीभि परिवृतः इत एवागच्छति । राघवभट्ट, पृ. १२७
J यवनीशब्देन राज्ञः शस्त्रधारिण्य उच्यन्ते । श्रीनिवास, पृ. १२७.
यहाँ पर बगाली एव मैथिलीवाचना में जो पाठ है वह प्रायः एकरूप है, लेकिन काश्मीरीवाचना से शरू करके देवनागरी एव दाक्षिणात्य वाचना में एक नया ही पाठपरिवर्तन दिवा रहा है। प्रथम प्रकार के पाठानुसार रंगभूमि पर केवल पुष्पमाला को धारण करके हाथ में धनुष्यबाण लिया हुआ राजा दुष्यन्त प्रविष्ट होगा । परतु दूसरे प्रकार के पाठअनुसार तो शस्त्रधारिणी और पुष्पमाला पहनी हुई यवनीस्त्रियों से परिवृत्त हुआ राजा दुष्यन्त रंग पर प्रविष्ट होगा । तो यह दूसरे पाठ में रगक्षमता बढ़ाने का आयास है । [अथवा यह भी संभव है कि अल्पसंख्यक पात्रसृष्टि के द्वारा यदि कोई सूत्रधार ने इस नाटक का प्रयोग करने का उपक्रम लिया होगा तो उसने "यवनीभिः परिवत्तः"