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________________ Vol XXII, 1998 "शाकुन्तल" के विदूषक की उक्तियाँ 141 J अअ मिओ इत्यादिना अयं मृग पुनरय वराह इति तदलाभे अय शार्दूल इति ।श्रीनिवास, पृ. १२४ ___ यहाँ पर बगाली वाचना एव मैथिलीवाचना में केवल 'मृग' तथा 'वाह' का उल्लेख है, लेकिन देवनागरी वाचना के टीकाकार राघवभट्ट एवं दाक्षिणात्य वाचना के अन्य टीकाकारों ने 'मृग', 'वराह' के साथ 'शार्दूल' का भी निर्देश किया है । अतः हम ऐसी कल्पना कर सकते है कि विदूषक जब रगभूमि पर प्रवेश करता होगा, तब व्याधलोगों की अनुकृति करता हुआ साभिनय यह वाक्य बोलता होगा । उस में कुछ और नया अभिनय जोड़ने के लिए दाक्षिणात्य नटमण्डलियों ने यह "अय शार्दूल:" वाला नया पाठ्याश प्रक्षिप्त कर दिया होगा । २. उपर्युक्त सन्दर्भ में उसका एक वाक्य इस प्रकार है :A मम अधण्णदाए सउन्तला णाम का वि तावसकण्णआ दिट्ठा । पिशेल, पृ. १७ (मम अधन्यतया शकुन्तला नाम कापि ) B.ममाधन्यतयाऽभाग्येन शकुन्तला नाम । शकर, पृ. १९४ c प्रविष्टेनाधन्यतया शकुन्तला नाम..। नरहरि, पृ. ३१२ D तावसकन्यका शकुन्तला ममाधन्यतया दर्शिता ।-काश्मीरी, पृ. २७ E तापसकन्यका शकुन्तला नाम ममाधन्यतया दर्शिता ।-काट्यवेम, पृ. ३४ F. उदरस्याधन्यतया दर्शितेत्यनेन..। चर्चा, पृ. ८१ G अत्र राजकर्तृके शकुन्तलादर्शने निजोदरनिर्भाग्यतायाः प्रयोजक । अभिराम, पृ. ७१. H . शकुन्तला नाम ममाधन्यतया दर्शिता । घनश्याम, पृ. १०४ I शकुन्तला ममाधन्यतया दर्शिता । राघवभट्ट, पृ. १२६ J अधन्यतयेति । असभाव्यस्थले राज्ञो युवतिदर्शने स्वस्याधन्यतयैव हेतुरिति ।-श्रीनिवास, १२६ यहाँ पर भी बगाली वाचना, मैथिलीवाचना और काश्मीरीवाचना में केवल 'ममाधन्यतया' ऐसा पाठ है, लेकिन दाक्षिणात्य वाचना के दो टीकाकार--एक चर्चाकार और दूसरे अभिराम "मम उदरस्य अधन्यतया"या "निजोदरनिर्भाग्यतायाः" ऐसा पाठान्तर प्रस्तुत करते है। दूसरी और देवनागरी वाचना के टीकाकार राघवभट्ट, एव दाक्षिणात्य वाचना के अन्य टीकाकार-काट्यवेम, घनश्याम तथा श्रीनिवास भी केवल 'ममाधन्यतया' ऐसा पाठ ही देते है। इस से यह प्रतीत होता है कि नाट्यप्रयोग के समय कोई अज्ञात नटमण्डली के द्वारा सामाजिकों को हसाने के लिए ही 'ममाधन्यतया' में 'ममोदरस्य अधन्यतया ऐसा शब्दविशेष प्रक्षिप्त कर दिया होगा | क्योंकि संस्कृत नाटकों में विदूषक
SR No.520772
Book TitleSambodhi 1998 Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages279
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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