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वसन्तकुमार म भट्ट
SAMBODHI
साराश यह है कि अभिज्ञानशाकुन्तल की प्रायः पाँच वाचनाएँ उपलब्ध होती है । (क) बगाली वाचना (पिशेल द्वारा सम्पादित (ख) मैथिली वाचना', (ग) काश्मीरी वाचना (डॉ. बेलवेलकरजी द्वारा सम्पादित), (घ) देवनागरी वाचना और (ड) दाक्षिणात्य वाचना ॥
२. इन में से कौन सी वाचना में संक्रमित हुआ या सुरक्षित रहा पाठ अधिक श्रद्धेय है, और कौन सी पाठपरम्परा प्राचीनतम है ? । इस प्रश्न का कोई निर्विवाद समाधान मिलना सरल नहीं है । साथ में यह भी सत्य है कि जब तक संस्कृत वाङ्मय की 'अभिज्ञानशाकुन्तल' आदि जैसी श्रेष्ठ काव्यकृतियाँ का समीक्षित पाठसम्पादन हमारे सामने नहीं आयेगा तब तक किसी भी काव्यकृति का समीचीन मूल्याकन नहीं हो सकेगा ॥ प्रस्तुत लेख में, शाकुन्तल के टीकाटिप्पण साहित्य को आधार बनाकर और प्रायः विदूषक की उक्तियाँ लेकर" हम-(क) कतिपय पाठअन्तरों के उद्भव हेतु ढूँढने का आयास करेंगे। तथा विभिन्न वाचनाओं में पाठान्तरों का सक्रमण कहाँ से शुरु हुआ होगा इस सदर्भ में कुछ अनुमान प्रस्तुत करेंगे ॥
१ विदूषक की उक्तियों में प्राप्त होते हुए कतिपय पाठान्तर और उनका विश्लेषण अब प्रस्तुत
१ 'शाकुन्तल'के द्वितीय अङ्क के प्रारभ में एकाकी विदूषक की एक लम्बी उक्ति है । उसमें वह कहता है कि
A अअं मिओ अ वराहो त्ति मज्झंदिणे वि गिम्हे । (अय मृगः अय वराह इति मध्यंदिनेऽपि ग्रीष्मे. )
(-पिशेल, पृ. १७) B अयं मृगोऽय वराह इति । (-शंकर, पृ. १९३) C अय मृगोऽयं वराह इति .। (नरहरि, पृ. ३११) D. अय मृगोऽयं वराह इति. | काश्मीरी, पृ. २६ E अय मृगोऽयं वराहोऽयं शार्दूल इति । काट्यवेम, पृ. ३४ F. अयं मृगः, अय वराहः, अयं शार्दूल इत्यत्र. । चर्चा, पृ. ७९ G अयं मृगोऽयं वराहोऽय शार्दूल इति । अभिराम, पृ. ६९ H अय मृगोऽयं वराहोऽयं शार्दूल इति । घनश्याम, पृ. १०२ I. अयं मओ मृगः ।. अयं वराहोऽयं शार्दूल इति
-राघवभट्ट, पृ. १२४