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Vol XXII, 1998
'रसगंगाधर' के काव्यलक्षण...
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धर्म है जो केवल अनुभव से ही प्रमाणित किया जाता है ।
काव्यलक्षण देने के बाद जगन्नाथ ने स्पष्टतापूर्वक समापन करते हुए काव्य की तीन व्याख्याएँ दी हैं और तत्पश्चात् प्राचीनों के काव्यलक्षण का खंडन किया है।
यहाँ इन तीनों व्याख्याओं का विशद विवरण न करके उसका निर्देशमात्र ही पर्याप्त समझा जायेगा, क्योंकि, यह समग्र निरूपण पूर्णतया शास्त्रीय और तर्कसंगत प्रतीत होता है। उसके स्वीकार में हमें कोई आपत्ति नहीं ।
जगन्नाथ कहते हैं कि
इत्थ च चमत्कारजनकभावनाविषयार्थप्रतिपादकशब्दत्वम्, यत्प्रतिपादितार्थविषयकभावनात्व चमत्कारजनकताऽवच्छेदक तत्त्वम्, स्वविशिष्टजनकताऽवच्छेदकार्थप्रतिपादकताससर्गेण चमत्कारत्ववत्वमेव वा काव्यत्वमिति फलितम् ।।
प्रथम व्याख्या के अनुसार चमत्कृति उत्पन्न करनेवाली भावना के विषयरूप अर्थ का प्रतिपादक शब्द काव्य है । दूसरे में, शब्द से प्रतिपादित अर्थविषयक भावना कि जिसमें चमत्कृति उत्पन्न करने का वैशिष्ट्य है, उसे काव्य कहा गया है । जब कि, तीसरी व्याख्या के द्वारा बताया गया है कि चमत्कारकतायुक्त होना ही काव्यत्व है, जो चमत्कृति से विशिष्ट आनन्द उत्पन्न करनेवाली भावना को आनन्दजनकता के द्वारा विशिष्ट करते हुए अर्थ के प्रतिपादक शब्द के ससर्ग से सिद्ध होता है।
यहाँ तक हमने जगन्नाथ के काव्यलक्षण को यथाकथित रूप में प्रस्तुत किया है। काव्यलक्षण के विषय में यह समग्र चर्चा, जो जगन्नाथ ने की है वह नितान्त नावीन्यपूर्ण है। किसी भी आलकारिक ने इस तरह काव्य का स्वरूप निश्चित करने का प्रयास नहीं किया । भामहादि आचार्यों ने जो काव्यलक्षण दिये हैं उन सब में जगन्नाथ का यह प्रयास अत्यधिक सफल समझा जाता है, फिर भी "शब्दः काव्यम्' की जो परम्परा है उस का स्वीकार युक्तिपूर्ण नहीं है। इस परम्परा का स्वीकार करके जगन्नाथ ने जिस अंदाज से प्राचीनों के काव्यलक्षण का खडन किया है, उस विषय में पुनः विचार करना आवश्यक है।
सर्व प्रथम मम्मयचार्य के काव्यलक्षण का खडन करते हए जगन्नाथ ने कहा है कि. शब्द और अर्थ दोनों का एक साथ बोध होता है, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, उसके लिए कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। इससे उलट काव्य जोरों से पढा जाता है । 'काव्य में से अर्थ समझ में आता है । मैंने काव्य सुना किन्तु 'उसका अर्थ नहीं पाया ।' ऐसे ऐसे लोकप्रसिद्ध व्यवहार से फलित होता है कि, विशिष्ट शब्द ही काव्य है ।
यह जो तर्क जगन्नाथ ने दिया है वह हमें मान्य नहीं, क्योंकि, जो प्रमाण उपर दिये गये हैं, उसी से यह सिद्ध होता है कि. काव्य से अर्थ को अलग नहीं किया जा सकता । काव्य में