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________________ Vol XXII, 1998 सर्वानन्दसूरिकृत श्रीजगडूचरित.. 123 बदरगाहवाले इस नगर में जगडू के पिता सोल ने 'कथकोट छोडकर, ज्यादा संपत्ति प्राप्त करने के लिये सकुटुम्ब निवास किया । सर्ग ३ :- इस सर्ग का नाम 'रत्नाकर-वरदान-व्यावर्णन' है । सर्ग में ६१ श्लोक हैं । आरम्म में सोल के तीन पुत्र, जगडू, राज और पद्म का और उनकी पत्नीओं क्रमशः यशोमती, राजल्लदेवी और पद्मा का काव्यात्मक वर्णन है । बाद में जगडू को, बकरा के कठ में बाँधा हुआ मणि की पूजा करने से, लक्ष्मी की वृद्धि का वर्णन है। जगडू की पुत्री प्रीतिमती का यशोदेव के साथ लग्न तथा दुर्भाग्य से उसकी युवावय में मृत्यु का निरूपण है। जगडू प्रगतिशील एवं क्रान्तिकारी विचार के थे । १४ वीं शताब्दी में विधवा का पुनर्विवाह का विचार-क्रान्तिकारी लगता है। पुत्री का पुनर्लग्न के लिये जगडू ने अपनी ज्ञाति से संमति प्राप्त की लेकिन अपने कुटुम्ब की दो वृद्ध महिलाओं का विरोध होने के कारण विचार को कार्यान्वित नहीं किया । तीनों भाईओं की यहाँ पुत्र संतति नहीं थी । जगडू चिंतित रहता था । सात दिन उपवास करके नैवेद्य धरकर समुद्र के देव वरुणदेव की । आराधना की जगडू ने प्रसन्न वरुण से वशवृद्धि कर पुत्र तथा धनवृद्धिकर घन माँगा । वरुण ने कहा 'तेरे भाग्य में पुत्र नहीं है, लक्ष्मी तेरे यहाँ स्थिर रहेगी, तेरे जहाजों को समुद्र में कभी नुकसान नहीं होगा । तथा भाई राज के यहाँ दो पुत्र और एक पुत्री होंगे। इस प्रकार का वरदान तथा रत्न देकर देव अंतर्धान हो गये । जगडू सुबह घर को लौट । इस सर्ग में पुत्र संतति के बारे में अच्छे श्लोक हैं ।२ निशान्त और सूर्योदय का कवि ने सुन्दर प्रकृतिवर्णन किया है । सर्ग ४:- सर्ग का नाम 'भद्रासुरदर्शन' है। इसमें ३६ श्लोक हैं । जगडू सेठ का एकसेवक जयंतसिंह याने जेतसी जगडू के लिये धन कमाने के लिये समुद्र पार करके आर्द्रपुर (एडन) पहूँचा। वहाँ राजा को नज़राना देकर प्रसन्न करके किराया पर विशाल मकान लेकर रहता था । एक बार समुद्र तट पर एक बडा पथ्थर खरीद ने के बारे में स्तम्भपुरी-खभात के तुर्क के सेवक काराणी के साथ टक्कर हो गई। दोनों कीमत बठाते चले । तील लाख दीनार तुरन्त देकर जेतसी ने तुर्क का पराजय किया। जेतसी अन्य कोई सामान लिये बिना जहाज में केवल पथ्थर लेकर भद्रपुर वापस आया । विदेश में प्रतिष्ठा बनाई अत: जगडू ने वींटी तथा रेशमीवस्त्र देकर जेतसी का सन्मान किया। उसकी मासिक आय बढाई । तीन लाख दीनार का पथ्थर घर के आगन में हि रखा । नगरदेवता भद्रदेव योगीन्द्र का रूप लेकर जगडू के घर आये । यौगिक शक्ति से देखनेवाले भद्रदेव ने पथ्थर घर में मंगवाकर तीक्ष्ण शस्त्र से तोडने के कहा । ऐसा करने पर शिला के दो
SR No.520772
Book TitleSambodhi 1998 Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages279
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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