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________________ 124 गोविन्दलाल शं शाह SAMBODHI भाग हो गये । अनेक दिव्य रत्नों की पक्ति दृष्टिगोचर हुई । राजा दिलीप ने रत्न अन्दर रखे थे ऐसा ताम्रलेख भी मिला । भद्रदेव अन्तर्धान हो गये । दिनप्रतिदिन जगडू की समृद्धि बठती रही । उनके यश का काव्यात्मक वर्णन है ।। सर्ग-५ .- इस सर्ग का नाम 'पीठदेव नरपति दर्पदलन' है। इसमें ४२ श्लोक हैं। मर्यादा छोडकर आगे बठनेवाली प्रलयकालीन समुद्र जैसा, पारकर देश का राजा पीढदेव, सैन्य की उठती धूलि से सूर्य को आच्छादित करता हुआ कच्छदेश को खदेडता हुआ भद्रेश्वर पर आक्रमण ले आया। सोलकी वश के राजा भीमदेव ने दुर्ग बनवाया था। पीठदेव उसको तोडकर, लूट चलाकर वापस चला गया । जगड ने नगरदर्ग का पुनर्निमाण शुरू किया । यह जानकर पीठदेव ने दूत भेजकर जगडू को मना करते हुए कहा, "शृङ्गद्वय चेत् खरमूख्रिभावि, तदा विधातासि च वप्रमत्र ॥२ जगढ़ ने प्रत्युत्तर भेजा "खरस्य शृङ्गे विरचय्य मूर्ध्नि दुर्ग करिष्ये विहितप्रयत्नः ॥१४ दूत ने समझाया कि बलवान पीठदेव के साथ स्पर्धा करके, द्रव्य के अभिमान में आपको कुल का विनाश नहीं करना चाहिए । "पश्य प्रदीपस्य विभा विलोक्य पतन् पतङ्गो लभते विनाशम् ॥"५ प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिये जगडू ने उमदा नज़राना लेकर अणहिलपुर के राजा लवणप्रसाद से भेट की। राजा को स्तुति और धनसे सतुष्ट करके कहा, "जिस तरह जल का प्रवाह सरिता तट को तोडता है। उसी तरह आपके पूर्वज भीम ने जो बनवाया था वह दुर्ग पीठदेव ने तोडा है। मुझे क्षत्रियों के बडे ३६ कुल में उत्पन्न योद्धाओं का सैन्य वहाँ रखने के लिये दीजिये । भद्रेश्वर में लवणप्रसाद का सैन्य जगडू की साथ है ऐसा जानकर पीठदेव भाग चला । छ मास में दुर्ग बन गया । जगडू ने नया सैन्य गठित किया तथा लवणप्रसाद का सैन्य वापस भेजा। दुर्ग में दो सींग वाला गधा का पथ्थर का शिल्प बनवाया । पीठदेव के साथ संधि करके जगड़ ने पीठदेव को निमत्रित करके सत्कार किया । मान खडित होने के कारण आघात से पीडित पीठदेव के मुख में से रुधिर निकल आया और वह मर गया । इस तरह जगडू ने पीठदेव का अभिमान तोडा । सर्ग ६ :- इस सर्ग का नाम 'सकलजनसजीवन' है। इसमें १३२ श्लोक हैं । आरम्भ में जैन आचार्य परमदेव के तप एवं चमत्कार का वर्णन है। परमदेव जब भद्रेश्वर आये तब जगड़ ने उनका पूजा-सत्कार किया । परमदेव से नित्य उपदेश श्रावण करने से जगडू को धर्म के प्रति प्रीति हुई। जगडू परमदेव के साथ सघ लेकर गिरनार तथा शेजुंजय की यात्रा के लिये निकला । साथ में चतुरग सेना भी थी। कवि ने सघप्रयाण का याचकों को अन्न, वस्त्र, पात्र के दान का बीच में आनेवाले जैन दहेरासरों का जीर्णोद्धार तथा ध्वजारोहण का सरस वर्णन किया है । जगडू ने भद्रेश्वर वापस आकर वीरनाथ के मदिर पर सुवर्णकलश तथा सुवर्णदण्ड की स्थापना की । सुन्दर अष्टापद जिनमदिर अपने परिवार के लोगों का कल्याण के लिये बनवाया । जगडू ने तालाबों और वाटिकाओं की नवरचना करवाई। पूजा के पुष्पों के लिये उद्यान बनवाया । कपिलकोटा
SR No.520772
Book TitleSambodhi 1998 Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages279
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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