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________________ VoII. Xx, 1996 जगत् की विचित्रता... 103 मनोविज्ञान की भाषा में भिन्नता का नियम-(Law of Variation) साधारणत: यह समझ लिया जाता है कि 'समान समान' ही उत्पन्न करता है । इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्धिमान या स्वस्थ माता-पिता अपने ही समान सन्तान उत्पन्न करते हैं और निर्बल निर्बल सन्तान उत्पन्न करते हैं। पर कहीं-कहीं हमें इस नियम में परिवर्तन दिखाई देता है। 'बुद्धिमान माता-पिता के मूरख सन्तान क्यों उत्पन्न होती है ? बहुत साधारण परिवार में कभीकभी बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति कैसे उत्पन्न हो जाते हैं ? इस शंका का समाधान भिन्नता के नियम से होता है ।' वंशानुक्रमीय गुणों (Heredity traits) के वाहक बीजकोष (Germ Plasm) हुआ करते हैं । ये बीज-कोष अनेक रेशे से बने हुए होते हैं । इन रेशों को अंग्रेजी में क्रोमो(Chromosomes) जोम्स कहते हैं । इसे हम वंश सूत्र की संज्ञा देंगे । जीन्स-विभिन्न गुण दोषों के वाहक एक बीजकोष में अनेक वंश सूत्र पाये जाते हैं । आश्चर्य है कि इन वंश सूत्रों के और भी अनेक सूक्ष्म भाग होते हैं, जिन्हें अंग्रेजी में जीन्स कहते हैं । ये 'जीन्स' अनेक संख्या में मिलकर वंश सूत्र बनाते हैं । वास्तव में ये जीन्स ही विभिन्न गुण-दोषों के वाहक होते हैं । कोई जीन पैर की लम्बाई का हुआ तो कोई नाक का । कोई छोटी आँख का हुआ तो कोई चिड़चिड़ापन का इत्यादि ।१७ जीवविज्ञान के अनुसार प्रत्येक भ्रूण-कोष में चौबीस पिता के तथा चौबीस माता के वंश-सूत्रों का समागम होता है । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इनके संयोग से १६,७७७,२१६ प्रकार की विभिन्न सम्भावनाएँ अपेक्षित हो सकती हैं। विभिन्न मानसिक-शारीरिक स्थिति : प्रकृति की लीला कितनी विचित्र है ! वैज्ञानिकों का कथन है कि वंशसूत्रों का मिश्रण एक माता-पिता में भी सदैव समान नहीं होता क्योंकि उनकी मानसिक तथा शारीरिक स्थिति सदैव एकसी नहीं रहती । मनोविज्ञान में भिन्नता का सिद्धान्त कर्मशास्त्र में तो वैयक्तिक भिन्नता का चित्रण मिलता ही है । मनोविज्ञान ने भी इसका विशद रूप से चित्रण किया है । इसके अनुसार वैयक्तिक भिन्नता का प्रश्न मूल प्रेरणाओं के सम्बन्ध में उठता है । मूल प्रेरणाएँ (Primary motives) - मूल प्रेरणाएँ सब में होती हैं, किन्तु उनकी मात्रा सब में एक समान नहीं होती । किसी में कोई एक प्रधान होती है तो किसी में कोई दूसरी प्रधान होती है।' अधिगम क्षमता (Learning Capacity) अधिगम क्षमता भी सब में होती है, किसी में अधिक होती है, किसी में कम । वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धान्त तो मनोविज्ञान के प्रत्येक सिद्धान्त के साथ जुड़ा हुआ है ।
SR No.520770
Book TitleSambodhi 1996 Vol 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages220
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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