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________________ रत्नलाल जैन SAMBODHI 102 राजा मिलिन्द ने कहा - 'मैं समझता हूँ कि बीजों के भिन्न-भिन्न होने के कारण ही वनस्पति भी भिन्न-भिन्न होती हैं।' नागसेन ने कहा-'राजन जीवों की विविधता का कारण भी उनका अपना कर्म ही होता है। सभी जीव अपने-अपने कर्मों के फल भोगते हैं। सभी जीव अपने कर्मों के अनुसार ही नाना गतियों और योनियों में उत्पन्न होते हैं ।' वैदिक दर्शन मनुस्मृति में लिखा है कि कर्म के कारण ही मनुष्य को उत्तम, मध्यम या अधम गति प्राप्त होती है-१२ "मन, वचन और शरीर के शुभ या अशुभ कर्म-फल के कारण मनुष्य की उत्तम, मध्यम या अधम गति होती है।' उन्हों ने आगे कहा है-१३ 'शुभ कर्मों के योग से प्राणी देव योनि को प्राप्त होता है । मिश्र कर्मयोग से वह मनुष्ययोनि में जन्मता है और अशुभ कर्मों के कारण वह तिर्यंच-पशु-पक्षी आदि योनि में उत्पन्न होता है । विष्णु पुराण में कहा गया है-१४ _'हे राजन् ! यह आत्मा न तो देव है, न मनुष्य है, और न ही पशु है, न ही वृक्ष है-' ये भेद तो कर्मजन्य शरीर कृतियों का है।' शारीरिक मनोविज्ञान और नाम कर्म शारीरिक मनोविज्ञान आज के शरीर शास्त्रियों ने शरीर में अवस्थित ग्रन्थियों के विषय में बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया है । बोना होना या लम्बा होना, सुन्दर या असुन्दर होना, बुद्धिमान या बुद्धिहीन होना, स्वस्थ या रोगी होना - यह सब इन ग्रन्थियों के स्राव पर निर्भर है । ग्रन्थियों के स्राव इन सबको नियन्त्रित करते हैं। इसी तथ्य को हम कर्मशास्त्रीय भाषा में समझें । कर्मशास्त्रीय भाषा - नाम कर्म आठ कर्मों में एक कर्म है - नाम कर्म । उसके अनेक विभाग हैं । संस्थान नाम कर्म के कारण मनुष्य लम्बा या नौना होता है । इस प्रकार सुन्दर-कुरूप, सुस्वर वाला या दुःस्वरवाला आदि सब नाम कर्म की विभिन्न प्रकृतियों के कारण होता है । नाम कर्म का सूक्ष्म अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि हमारे शरीर का सारा निर्माण नाम कर्म के आधार पर होता है । उपर्युक्त कर्मशास्त्रीय विश्लेषण और शरीर शास्त्रीय विश्लेषण को देखें । दोनों में भाषा का अन्तर है, तथ्य का नहीं । शरीर-शास्त्री हार्मोन्स,' सिक्रीशन आफ ग्लैन्ड्स'-ग्रंथियों का स्राव कहते हैं। कर्म-शास्त्री कर्मों का 'रसविपाक'-'अनुभागबन्ध' कहते हैं ।
SR No.520770
Book TitleSambodhi 1996 Vol 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages220
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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