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________________ 101 Voll. XX, 1996 जगत् की विचित्रता... कर्म के कारण ही जीव संसार में पृथक् पृथक् गोत्रों में, जातियों में या गतियों में उत्पन्न हो जाता है - जिस प्रकार - "इस संसार में विभिन्न प्रकार के कर्म-बन्धन के कारण प्राणी भिन्न-भिन्न गोत्रों में, जातियों में उत्पन्न होते हैं ।' 'पूर्व जन्म-समय में किए कर्मों के अनुसार ही कितने ही जीव देवलोक में जाते हैं, अनेक नरक गति में और बहुत से असुर-निकाय में चले जाते हैं।' 'कितने ही जीव क्षत्रिय बन जाते हैं, अनेक जीव चांडाल के रूप में उत्पन्न हो जाते हैं । बहुत से कीडों पतंगों का जन्म ग्रहण कर लेते हैं तथा अनेक कुंधुरूप में चींटी की तरह जन्म लेते हैं।' 'इस प्रकार इस कर्म के संयोग से मूढ बना एवं भारी वेदना और दुःख पाता हुआ यह जीव मनुष्य गति को छोड़कर अन्य (नरक-तिर्यंच आदि) योनियों में दुःख कष्ट भोगता रहता हैं ।' बौद्ध दर्शन में - राजा मिलिन्द ने पूछा भगवन् नागसेन ! ये जो पांच आयतन - आँख, कान, नाक, जीभ और चमड़ी हैं क्या ये अलगअलग कर्मों के फल हैं, या एक ही कर्म के फल हैं ? - राजन् । अलग-अलग कर्मों के फल हैं, एक ही कर्मफल नहीं । __ - कृपा करके उपमा द्वारा समझाइए । - राजन् । यदि कोई मनुष्य एक खेत में पृथक पृथक् जाति के बीज बोये तो क्या अनेक प्रकार के बीजों का फल अनेक जाति का न होगा ? - हाँ भगवन् ! अनेक प्रकार के बीजों का फल अनेक जाति का होगा । - राजन् ! इसी प्रकार ये पांच आयतन हैं - ये पृथक् पृथक् कर्मों के फल हैं । एक कर्म का फल नहीं । - भंते ! आपने ठीक फरमाया । राजा मिलिन्द और स्थविर नागसेन के बीच हुए संवाद में जीवों की विविधता, विभिन्नता का कारण कर्म ही है-१० राजा मिलिन्द ने स्थविर नागसेन से पूछा "भन्ते ! क्या कारण है कि सभी मनुष्य समान नहीं होते - कोई अल्प-आयुवाला, कोई दीर्घ आयुवाला; कोई अधिक रोगी तो कोई नीरोगी, कोई कुरूप तो कोई अति सुन्दर; कोई प्रभावहीन, कोई प्रभावशाली, कोई अल्पभोगी-निर्धन, कोई बहु भोगी-धनवान्, कोई नीच कुल वाला, कोई ऊँचे कुल वाला, तथा कोई मूर्ख व कोई विद्वान् क्यों होते हैं ? स्थविर नागसेन ने प्रश्नों का उत्तर देते कहा -- 'राजन् ! क्या कारण है कि सभी वनस्पति एक जैसी नहीं होती - कोई खट्टी, कोई मीठी, कोई 'नमकीन, कोई तीखी, कोई कड़वी, कोई कसेजी क्यों होती है ?
SR No.520770
Book TitleSambodhi 1996 Vol 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages220
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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