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________________ Vol. XIX, 1994-1995. भरतपुर क्षेत्रिय... 111 महाभारत व रामायण के पात्रों के अतिरिक्त स्थानीय राजदरबार, युद्ध पर आधारित हैं। अन्य सभी चित्र विषयों में मन्दिर का दृश्य चित्र स्वयं में अलग स्थान रखता है जिसमें चित्रकार ने देवी का मन्दिर व मन्दिर के पीछे पेड़-पौधे आदि चित्रित कर रमणीक शान्त वातावरण की भावाभिव्यक्ति की है। एक ओर से मन्दिर में प्रवेश हेतु महिलाओं को पंक्तिबद्ध हाथों में पूजा सामग्री लिये चित्रण है तथा चतुर्भुजी देवी को चौकी पर विराजमान त्रिशूल व तलवार लिये चित्रण है । सम्पूर्ण चित्र में देवी के पास नारी आकृति के समीप पुरुषाकृति को चित्रितकर मुख्य व्यक्ति को दिखाया है। इसके साथ ही पारदर्शिता तथा रेखाओं के द्वारा चित्र संयोजन प्रधान है। प्रकृति चित्रण में घने पेड़ पौधे व रेखाओं से चित्र में दूरी का समावेश किया है। भरतपुर के जाट शासकों की छतरीयाँ, गोवर्धन के कुसुम सरोवर स्थान से अपनी वास्तुकला की भव्यता व चित्रता व चित्रण कार्य के लिये प्रसिद्ध है । कुसुक सरोवर में राजा सूरजमल, बल्देव सिंह, बलवन्त सिंह की छतरियां है जिसमें राजा सूरजमल की छतरी के आसपास उनकी रानियाँ की छतरियाँ हैं । ये सभी छतरियाँ चित्रण कार्य युक्त हैं जिनमें रास दृश्य, शिकार दृश्य, युद्ध दृश्य, कृष्ण के विषय, राजदरबार से सम्बधित विषयों को लिया गया है परन्तु एक चित्र विषय “ कार्यरत चित्रकार" अन्य विशषों से अलग स्थान रखता है जो कि बलदेव सिंह की छतरी के गुम्बज में चित्रित है। गुम्बज में अलग-अलग फलक में अलग-अलग चित्रण विषय है। इस फलक में दो विषयों का चित्रण है। प्रथम फलक बांयी ओर महल के नीचेवाले भाग में नायिका को कुर्सी पर विराजमान तथा पीछे खड़ी सेविका को हाथ में चॅवर लिये हुये अंकित किया है। नायिका के सामने चार चित्रकार जमीन पर बैठे नायिका का चित्र बनाने की अलग-अलग मुद्राओं में हैं इसके अतिरिक्त इस गवाक्ष के ऊपर वाले गवाक्ष में कृष्ण और राधा को बैठे बनाया है। इसी फलक के दायी ओर एक गोपी को वस्त्रधारण व अन्य दो को शृंगार करती हुयी चित्रित किया है। चित्र के एक और कृष्ण व दो गोपियों को आपस में वार्तालाप में मन भी देखा जा सकता है। नायिका व गोपियों की उँची चोली, ओढनी, लँहगा तथा आभूषण राजस्थानी वेशभूषा के अनुरूप चटक रंगों में है। चित्र में हरा व कत्थई रंग का प्रयोग कम है तो पीले भूरे की अधिकता से चित्र के रंग संयोजन में आकर्षण उत्पन्न किया है। इस प्रकार भरतपुर क्षेत्रीय उक्त स्थानों के भित्तिचित्रों की परम्परा के मूल प्रेरक तत्वों में धार्मिक भावनायें, लोकतत्व तत्कालीन समाज की परम्परायें, कलाकारो की स्वानुभूति तथा कलाकारों की अभिरूचियों का दिग्दर्शन है जो कि वर्तमान कला जगत में अपनी विशेष पहिचान बनाये हुये है । पादटिप्पणी : १. डा० सत्यप्रकाश - ए ब्रीफ नोट आरिजन एण्ड डवलपमेन्ट ऑफ म्यूरल्स इन राजस्थान, कलावृत, १९७९ पृ०सं० ७१ से ७४. २. आमेर संग्रहालय में प्रदर्शित. ३. आर्कियोलोजीकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट ऑफ ए टूर इन ईस्टर्न राजपूताना द्वारा - ०सं० ५९ एवं प्रभुदयाल मित्तलवृज की कलाओं का इतिहास, मथुरा, १९६८ पृ०सं० २७०. ४. डा० राधाकृष्णन् वशिष्ठ - " मेवाड की चित्रांकन परम्परा" जयपुर १९८४, पृ०सं० ४४. कर्लाइल भाग २०
SR No.520769
Book TitleSambodhi 1994 Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages182
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size6 MB
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