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Vol. XIX, 1994-1995.
भरतपुर क्षेत्रिय...
109 नि:सन्देह भरतपुर क्षेत्रीय भित्तिचित्रण का भारतीय चित्रकला इतिहास में अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन भित्तिचित्रों में सांस्कृतिक परम्परा, धार्मिक विश्वास तथा राजनैतिक अवस्थाओं का सामाजिक परिपेक्ष में व्यौरेवार रूप से चित्रण हुआ है। अत: यह कहना उचित होगा कि भित्तिचित्रों में भारतीय संस्कृति को जीवित रखने, धर्म की मर्यादाओं को आयु देने व परम्पपराओं की कतिपय विशेषताओं को समाहित रखने की सामर्थ्य है। इसके अनेक उदाहरण सभीपस्थ करौलर, अलवर, धौलपुर आदि स्थानों में भी देखे जा सकते हैं जिनका इस क्षेत्र के जनमानस से कलात्मक आदान प्रदान होता रहा है और यह परम्परा यहाँ शाताब्दियों से अक्षुण्ण रही है। कारण यह है कि यहाँ के सांस्कृतिक धरातल में बृज का धार्मिक तथा अन्य राजनैतिक जनजीवन से प्रभावित होकर जो अभिव्यक्ति होती रही है वह चाहें यहाँ की परम्परा को ज्यों का त्यों निर्वाहित नहीं करती रही हो फिर भी कला के प्रति यहाँ का जनमानस उदासीन रहा हो यह भी प्रतीत नहीं हो रहा है। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर विभिन्न राजप्रासादों, दर्गे, हवेलियों, मन्दिरों एवं महत्वपूर्ण स्मारकों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनसे भरतपुर क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर विरासत में तथा भित्ति चित्रकला अपना विशेष ध्यान रखती है। इस क्षेत्र में प्राप्त भित्तिचित्रों के विधान एवं शैलीगत विशेषताओं की अपेक्षा चित्र की विषयवस्तु इतनी महत्वपूर्ण नहीं है। किन्तु विषय वस्तु के आधार पर ही सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस क्षेत्र में चित्रण विषयवस्तु की व्यापकता को देखकर यह आभास होता है कि यहाँ के चित्रकारों ने भित्तिचित्रों को अपनी कुछ मौलिक कठिनाइयों एवं सीमाओं के होते हुए हर अच्छे धार्मिक, राजदरबार आदि से सम्बन्धित विषय स्थापित करने का प्रयास किया है। भित्तिचित्रण विषय प्रमुख रूप से चार भागों में विभाजित किये जा सकते हैं।
१ - धार्मिक विषय २- राजदरबार से सम्बन्धित ३ - लोकजीवन विषयक चित्र ४ - आलेखन आदि के विषयवस्तु क्रमश: विभिन्न स्थलों से सम्बन्धित
चित्रों का विवेचनात्मक अध्ययन इस प्रकार से निम्नचित्रों से मूल्यांकित
कर सकते हैं। वैर के किले में सफेद महल के एक कक्ष में उत्कीर्ण पौराणिक विषय के भित्तिचित्र देखे जा सकते हैं। उक्त चित्र लगभग १७२६ ई० के बने प्रमाणित होते हैं चूंकि इस किले की स्थापना के साथ ही किले की प्रतिष्ठा एवं समारोह से पूर्व के ही चित्रण इसमें मिलते हैं। वर्तमान में इस महल में सफेदी करवाने के कारण चित्र स्पष्ट नहीं देखे जा सकते हैं। वैर के चित्रों में लोककला का प्रभाव दिखाई देता है। बड़े-बड़े फूल व पत्तियों से घिरे इस चित्रण में कुछ विषय स्पष्ट है। जैसे चित्र के मध्य नीचे सूर्य के सात घोड़ों व रथ का अंकन हो रहा है। रथ के ऊपर बैठे सूर्य भगवान के हाथों में आयुध अस्पष्ट है परन्तु मुख्य आकृति के रूप में पीछे उनके तेज का प्रतीक प्रभामण्डल चित्रित किया गया है। प्रस्तुत चित्र एक सफल संयोजन है जिसमें प्राचीन कलारूपों में हाथी का स्वरूप दिखाया है तो दूसरी तरफ दो हाथियों व उनके मध्य एक आकृति चित्रित कर चित्र में सन्तुलन स्थापित किया है इन बड़े आकारों को पास में चित्रित मानव रेखाकृति के अंकन से सन्तुलित कर चित्र में गतिपूर्ण हलचल दिखाई है। उक्त पौराणिक स्वरूप के साथ ही चित्र के