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भरतपुर क्षेत्रिय भित्तिचित्र स्थल एवं चित्रण विषय
तनूजा सिंह
सांस्कृतिक परिवेश में भरतपुर क्षेत्र प्राचीनकाल से कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है जिसे ब्रज क्षेत्र की संस्कृति ने महत्वपूर्ण स्थान दिया। यहाँ की कला पूर्वी राजस्थान व ब्रज की कला के रूप में विकसित हुई। अत: इस क्षेत्र पर ब्रजभूमि का सामाजिक प्रभाव लोकजीवन की कलाओं में देखा जा सकता है क्योंकि यह मथुरा के निकट है और सतवास, वैर, कामां, डीग आदि बृज क्षेत्र के ही अभिन्न भाग रहे हैं। अत: यहाँ के मन्दिरों व महलों में किये गये चित्रावशेष इसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में विशेष महत्त्व रखते हैं।
इस क्षेत्र में प्राचीन शिल्पावशेषों के साथ ही बन्दबरेठा में 'द' नामक स्थान पर गेरूमय रेखांकित मानवीय आकृतियों के शैलचित्र प्राप्त हुये हैं। इसके अतिरिक्त नोह ग्राम से मिट्टी के पात्रों में काले रंग की रेखाओं के अलंकरण प्राप्त हुए, परन्तु इसके पश्चात् चित्रकला के आधार की शृंखला टूटी हुयी है। फिर भी इस क्षेत्र में उपलब्ध चित्रण सम्बन्धित कार्य से ज्ञात होता है कि भरतपुर क्षेत्र में भित्तिचित्रण परम्परा रही
है।
अत: यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि चित्रकला क्षेत्र में रचनात्मक प्रवृत्ति मानव प्राणियों में शुरू से ही रही है। भारतीय चित्रकला के क्रमिक इतिहास के सिंहावलोकन से स्पष्ट होता है कि यह कलाभिव्यक्ति प्रत्येक युग की आत्मा को संजोये निरन्तर विकसित होती रही। प्रागौतिहासिक गुहाचित्र इस बात के साक्षी हैं। भारतीय चित्रविद्याचार्यों ने भित्ति चित्रकला की उच्चता को प्राप्त किया जिसके विश्वविदित उदाहरण अजन्ता, बाद्य, बादामी तथा सित्तनवासल आदि की गुफाओं भित्तिचित्र हैं।
भित्तिचित्रण की परम्परा लगभग मध्यकालीन समय से ही राजस्थानी चित्रकारों ने न केवल अपनाया वरन् इसे वर्तमान शताब्दि के मध्यकाल तक विधिवत जारी रखा। परिणाम स्वरूप राजस्थान के भरतपुर क्षेत्रीय किलों, राज प्रासादों, हवेलियों, छतरियों आदि में किये गये भित्तिचित्र इसके प्रमाण हैं। उदाहरण स्वरूप कामवन से सम्वत् १२५० में बनवाये गये विण्णुमंदिर के अभिलेख में “तयैतत्कारितं चित्रं चित्रकर्मोज्वलं महत्" शब्दावली से उस समय में चित्रण कार्य की पुष्टि हुयी है। परन्तु वर्तमान में उक्त संकेतानुसार मन्दिर की दीवारों पर एक भी चित्रफलक प्राप्त नहीं हुआ है। इसी प्रकार से सतवास नामक ग्राम के सूर्य- मन्दिर में भी चित्रण कार्य हुआ था जो कि परशियन प्रभावयुक्त बेलबूटों से अलंकृत था। परन्तु वर्तमान में यहाँ पर मन्दिर में सफेदी करवा देने से चित्रण कार्य ढक गया है। इसके अतिरिक्त विमलकुण्ड कामां में कामसेन की छतरी में कृष्ण राधा से सम्बन्धित चित्रण कार्य की जानकारी वहां के वृद्ध पुजारियों से मिलती है। परन्तु यहाँ पर भी सफेदी करवा देने से सिर्ख फूल-पत्तिों के चित्रण आधार अस्पष्ट दिखाई देते है। अत: यह स्पष्ट है कि इन परतों को साफ किया जाय तो ये प्राचीन सांस्कृतिक निधि के रूप में पुन: समाज के समक्ष प्रदर्शित किये जा सकेंगे।