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Vol. XIX, 1994-1995 संस्कृत साहित्य में...
107 इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि सुसंस्कृत परम्परा के न्यास को अपने अन्तर्गभ में बखूबिया धारण किये हुए यह अमरवाग्वल्लरी निर्बाध गति से अपने को विस्तार देती जा रही है, जिसमें नूतनातिनूतन प्रयोगों के प्रति पुखर स्वीकृति बिम्बप्रतिबिम्ब भावेन निरन्तर परिलक्षित होती है। और सच कहा जाय तो इसका यही औदार्य इसके उज्जवल भविष्य का मूल कारण है।
पादटिप्पणी:
(१).मालविकाग्निमित्रम् १/२.
(९) डॉ. राजेन्द्र मिश्र प्रणीत प्रमद्वरा पृ० १६. (२) आधुनिक संस्कृत साहित्य पृ० १२
(१०) डॉ. राजेन्द्र मिश्र प्रणीत प्रमद्वरा पृ० १६. (३) श्रीधर पाठक प्रणीत “भारतगीत" काव्यरचना के (११) डॉ. राजेन्द्र मिश्र प्रणीत प्रमद्वरा पृ० १६.
"स्वदेशपञ्चक" नाम्नी कविता से समुद्धृत. (१२) डॉ. राजेन्द्र मिश्र प्रणीत प्रमद्वरा पृ० ११. (४) श्रीधर पाठक प्रणीत “भारतगीत" काव्यरचना के (१३) 'सम्भूति:' से आइनिक संस्कृत साहित्य पृ० १५६.
"स्वदेशपञ्चक" नाम्नी कविता से समुद्धृत. (१४) डॉ. महराजदीन पाण्डेय कृत 'मौनवेध:' काव्यसंग्रह के - आधुनिक संस्कृत साहित्य पृ०११७
“जीवनं त्वेतत्' शीर्षक सं पृ० ३२. (५) आधुनिक संस्कृत साहित्य पृ० ८७-८८
(१५) 'मौनवेद्यः' के “कीद्दशी कालिके देवता त्वम्" शीर्षक (६) डॉ. शिवसागर त्रिपाठी प्रणीत 'सम्भूति' काव्यसंग्रह के से पृ० ३३. “भजनेतारम्' शीर्षक से उघृत.
(१६) 'मौनवेध:' पृ०६ (७) ई०पी० भरत पिषारटी रचित 'एक भारतम्' काव्यसंग्रह काव्यशीर्षक- “आयातो वनमाली नायि!".
से- आ०सं०सा०पृ० ९५. (८) शिवराजविजय
क) पृ० ६१, २०८. ख) पृ० ८७. ग) पृ० १११. घ) पृ० ३१४. ङ) पृ० २०८. च) भारतीय संविधान के संस्कअत अनुवाद से (छ, ज, झ) आधुनिक संस्कृत साहित्य पृ०७४.