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________________ 88 SAMBODHI इसके उत्तर में नैयायिकों का कहना है कि विशेषण-विशेष्यभाव, में संबंध न होने पर भी उसमें संबंधत्व का अभिनिरूपणीयत्व रूप साधर्म्य है । अतएव इसे उपचारवश संबंध कहा जा सकता है । नैयायिकों के अनुसार उसी अभाव का ग्रहण होता है जिसमें विशेषणता रहती है। बौद्धों के अनुसार तो विशेषण विशेष्यभाष को संबंध माना ही नहीं जा सकता, क्योंकि उनके अनुसार यह कल्पनामात्र है । अभाव का उस वस्तु के साथ कोई सहअस्तित्व या समन्वय नहीं हो सकता जिसका अभाव बताया गया है । उदाहरणार्थ, कोई घट किसी समय किसी स्थान पर है. तो उस समय उस स्थान पर उसके अस्तित्व का निषेध संभव नहीं । इसी प्रकार यदि वह घट नहीं है तो उस समय उस स्थान पर उस घट के अस्तित्व को सिद्ध नहीं किया जा सकता। ___ जयन्त भट्ट बौद्धों के उपर्युक्त मत की समीक्षा करते हुए कहते है कि किसी एक घट के नष्ट हो जाने पर यह नहीं कहा जा सकता कि सभी घटों का नाश हो गया है । अभाव भी अपने अस्तित्व या विनाश के लिए कारण का अनुवर्तन करता है । अतएव जयन्त भट्ट के अनुसार विकार में अभाव की वस्तुसत्ता है और विशेषण विशेष्यभाव के माध्यम से उसका प्रत्यक्ष होता है । प्रशस्तपाद के अनुसार अनुपलब्धि का अर्तभाव अनुमान में हो जाता है जैसे उत्पन्न कार्य को देखकर कारण सामग्री का अनुमान होता है, इसी प्रकार घटादि कार्य के प्रागभाव से उसकी कारण सामग्री के अभाव की भी अनुमान से सिद्धि हो जाती है। ७. अभावोऽप्यनुमानमेव । यथोत्पन्न कार्य कारणसद्भावे लिंगम्, एवमनुत्पन्न कार्य कारणासद्भावे लिंगम् । प्रशस्तपादभाष्य : अनु. प्र.
SR No.520768
Book TitleSambodhi 1993 Vol 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages172
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size17 MB
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