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________________ 87 Vol. XVIII, '92-93 अनुपलब्धि का स्वरूप कुमारिल के अनुसार अभाव के संदर्भ में अन्य पांच प्रमाण उपयुक्त नहीं है । अतः अभाव के ज्ञान के लिए अनुपलब्धि को प्रमाण मानना आवश्यक है । धर्मराजध्वरीन्द्र के अनुसार ज्ञान रूपी करण से उत्पन्न न होने वाले अभावानुभव के असाधारण कारण को अनुपलब्धि प्रमाण कहा जाता है । अनुमान व्याप्तिजन्य ज्ञान है परंतु अनुपलब्धि नहीं है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि ज्ञानयोग्य पदार्थ की अनुपलब्धि ही उस पदार्थ के अभाव को सिद्ध कर सकती है न कि ज्ञान के अयोग्य पदार्थ की अनुपलब्धि । ... कुमारिल भट्ट के अनुसार प्रमाण और उससे ज्ञेय वस्तु के स्वभाव में समानता होनी चाहिए। भावात्मक वस्तुओं का ज्ञान भावात्मक प्रमाणों से और अभावात्मक वस्तुओं का ज्ञान अभावात्मक प्रमाणों द्वारा होता है । कुमारिल सत् और असत् दो प्रकार की वस्तुएं मानते है । जयन्त भट्ट उपर्युक्त मत पर आक्षेप करते है । उनके अनुसार अभाव से कहीं-कहीं भाव पदार्थों । प्रमाण सामग्री में अभाव का भी समावेश रहता है । अतएव प्रमाण और प्रमेय में सत्तापरक एकरूपता का सिद्धान्त स्वीकार नहीं किया जाता । अभाव के वास्तविक स्वरूप के विषय में भारतीय दार्शनिकों के मतों का कई प्रकार से विभाजन किया गया है । भाट्ट मीमांसक और अद्वैत वैदान्तियों के अनुसार अभाव एक पदार्थ है और जिसका ज्ञान अनुपलब्धि प्रमाण से होता है । प्रभाकर मीमांसक और सांख्य सत्ता और असत्ता ये ही वस्तु के दो रूप मानते हैं । उनके अनुसार अभाव कोई पदार्थ नहीं है किन्तु उसका ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा संभव है । नैयायिकों के अनुसार अभाव एक पदार्थ है जिसका ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा तथा वैशेषिकों के अनुसार अनुमान द्वारा संभव है । बौद्धों के अनुसार यह कल्पना मात्र है फिर भी इनका ज्ञान अनुमान द्वारा संभव ___अनुपलब्धि की प्रामाणिकता नैयायिक अनुपलब्धि का अस्तित्व नहीं स्वीकार करते क्योंकि उनके अनुसार इसका अर्तभाव प्रत्यक्ष में हो जाता है । यहाँ पर यह आक्षेप है कि चक्षु से अभाव का ग्रहण नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्द्रियाँ स्वसम्बद्ध अर्थ का ही ग्रहण करती है और अभाव के साथ चक्षु का कोई संबंध नहीं है । नैयायिकों ने उपयुक्त आक्षेप के समाधान के लिए विशेषण-विशेष्यभाव नामक एक नये संबंध की कल्पना की है और इसी संबंध के अभाव को प्रत्यक्षगम्य माना है । उदाहरणर्थ, भूतल घटाभाव से विशिष्ट है । इस कथन में घटाभाव विशेषण तथा भूतल विशेष्य है तथा 'घटाभाव भूतल से विशिष्ट हैं, इसमें भूतल विशेषण तथा घटाभाव विशेष्य है । परिणामस्वरूप इस नियम के होते हुए भी कि 'इन्द्रियों स्वसम्बद्ध अर्थ का ग्रहण करती है, इन्द्रियों से अभाव का ग्रहण किया जा सकता है । वेदान्ती दार्शनिकों को उपर्युक्त संबंध अमान्य है । उनके अनुसार संबंध के लिए तीन बातों का होना आवश्यक है । दो व्यक्ति जिन पर वस्तु आश्रित है, आश्रित वस्तु उन दोनों वस्तुओं से भिन्न है तथा उसकी स्वतंत्र सत्ता है । ये तीनों बातें विशेषण-विशेष्यभाव संबंध पर नहीं घटित होती है । इसलिए यह संबंध नहीं है । ५. ज्ञानकरणाजन्याभावानुभवासाधारणकारणम् अनुपलब्धिरूपं प्रमाणम् अनुमानादिजन्यातीन्द्रियाभावानुभववहेतावनुमानादावति व्याप्तिवारणायाजन्यतेति । वेदान्तपरिभाषा, लखनऊ २०२१ पृष्ठ संख्या २१४-१५ । ६. अभावश्च क्वचिल्लिंगमिह्यते भावसविदः । तस्माद्युक्तमभावस्य नाभावेनैव वेदनम् । न्यायमंजरी, १.५१.
SR No.520768
Book TitleSambodhi 1993 Vol 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages172
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size17 MB
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