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________________ प्राकृत भाषा में उवृत्त स्वरके स्थान पर 'य' श्रुति की यथार्थता -के. आर. चन्द्र __आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य ने अपने प्राकृत व्याकरण में ऐसा नियम दिया है कि मध्यपर्ती अयप्राण व्यंजनों का लोप होने पर 'अ' और 'आ' शेष रहने पर यदि वे 'अ' और 'आ' के बाद में आये हो तो और कभी कभी अन्य स्वरों के बाद आये हो तो भी उन 'अ' और 'मा' की लघु प्रयत्न के कारण 'य' श्रुति होती है। उनका सूत्र और वृत्ति इस प्रकार हैअवर्णो य श्रुतिः 8.1.180 कगचजेत्या दिना लुकि सति शेषः अवर्णः अवर्णात्परो लघुप्रयत्नतरयश्रुतिभवति ।। नयर', रसायलो, पयावई पायालं । क्वचिद भवति (अर्थात् शेष 'अ', 'आ' के पहले 'अ', 'आ' नहीं होने पर भी) पिया (पिबति) और सरिया (सरिता 8.1.15) व्याकरणकार चण्ड के प्राकृत-लक्षण में भी 'य' अति का सूत्र दिया गया है. परन्तु हेमचन्द्र की तरह इतना स्पष्ट नहीं है यत्वमवणे' 3.37 ककारवर्ग तृतीयोरवणे परे यत्वं भवति । काकाः = काया; नागाः = नाया । वररुचि इस प्रवृत्ति के बारे में मौन है । तो क्या ऐसा माना जाय कि यह 'य' श्रुति की प्रवृत्ति वररुचि के बाद में प्रारम्भ हुई या वररुचि ने जिस प्राकृत भाषा का व्याकरण लिखा है उसमें या उनके समय में 'य' श्रुति का प्रचलन ही नहीं होगा और यह प्रवृत्ति बाद में प्रचलित हुई होगी। ... आश्चर्य की बात तो यह है कि इस मन्तव्य के विरुद्ध भरत-नाटयशास्त्र में भी 'य' श्रुति का आंशिक रूप से अप्रत्यक्ष रूप में अनुमोदन मिलता है। उसमें निम्न प्रकार का निदेश है प्रवलाचिराचला दिषु भवति च कारोपि तु यकार: 17.16 अर्थात् मध्यवर्ती 'च' का 'य' भी होता है। अब लोक प्रवृत्ति को भी देख लें कि उसमें 'य' श्रुति का प्रचलन था या नहीं और 'य' श्रति के नियम को मात्र जैन परम्परा में ही अपनाया गया है वह कहाँ तक उचित है। पालि साहित्य में तो मध्यवती' अल्पप्राण व्यंजनों के लोप की प्रवृत्ति है ही नहीं फिर भी उसमें भी कहीं कहीं पर 'य' श्रुति मिलती है जो लोक-प्रवृत्ति के प्रभाव के नमूने मिल रहे हो ऐसा माल्म होता है । गाइगर महोदय (36) ने कुछ उदाहरण इस प्रकार दिये हैं जो प्राचीनतम पालि साहित्य में भी मिलते हैं निय (निज) सुत्तनिपात, आवेणिय (आवेणिक) विनयपिटक, अपस्नोयान (अंपगोदान) बोधिवंश; खायित (खादित; जातक । 1. Pali Literature and Language; Geiger, Eng. Trans. B. K. Ghosh, Delhi-1968, pp. 81-82 HERE
SR No.520767
Book TitleSambodhi 1990 Vol 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1990
Total Pages151
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size6 MB
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