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________________ के. आर. चन्द्र इस 'य' श्रुति का प्रचलन प्राचीनकाल से ही था यह शिलालेखों से भी सिद्ध होता है। डॉ. एम ए. मेहेडले का इसके बारे में निम्न प्रकार का निष्कर्ष है.... सम्राट अशोक के पूर्वी क्षेत्र के शिलालेखों में मध्यवर्ती 'क' और 'ग' का कभी कभी लोप होने पर शेष रहे उस 'अ' का जो 'अ' और 'इ' के पश्चात् आता है कभी कभी दलने के कुछ उदाहरण प्राप्त हो रहे हैं। यह निष्कर्ष हेमचन्द्र के नियम के साथ बिलकुल साम्य रखता है। वे आगे कहते हैं कि इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के शिलालेखों में 'आ' और 'ओ' के पश्चात् आनेवाले 'ज' का लोप होने पर शेष रहे 'अ' के 'य' में बदलने के कुछ उदाहरण मिलते हैं । अशोक से परवर्ती ई. स. की चौथी शताब्दी तक के भारत के सभी क्षेत्रों में प्राप्त हो रहे शिलालेखों में मध्यवर्ती अल्पप्राण के लोप के बाद उत्त स्वर की 'य' श्रुति होने के कितने ही उदाहरण मिलते हैं और यथावत् उद्वृत्त स्वर भी मिलते हैं। शिलालेखों में प्राप्त हो रहे 'य' श्रुति के उदाहरण इस प्रकार दिये जा सकते हैं(i) अशोक के शिलालेख . . अनावुतिय (अनायुक्तिक) धली पृथ, जौगड पृथक् । - उपय (-उपग) धौली, कालसी, शाह, मान, गिर. । अधातिय (अर्धत्रिक) लघु शिलालेख । ____ कम्बोय (कम्बोज), रय (राजन्), समय (समाज) शाहबाजगढ । (ii) खरोष्ठी शिलालेख सहयर (सहचर) K14, महरय (महाराज) K131 प्रथम शताब्दी ई. स. पूर्व । संवत्शरय (संवत्सरक) K131 प्रथम शताब्दी ई. स अव्यय 'च' का भी 'य' K863, द्वितीय शताब्दी ई. स. (K86 काबुल के पास वर्दक के कलशलेख (Vase Inscp. से). महरय (महाराज) K131, पूय (पूजा) K, K804, K88 (प्रथम शताब्दी ई. स. __ पूर्व से तृतीय शताब्दी ई स तक) श्री मेहेण्डले द्वारा दिये गये उदाहरणों में (पृ. 298-299) य श्रुति के उदाहरणों के साथ साथ उद्वत्त स्वरों के उदाहरणों की .मात्रा अधिक है। , व्याकरणकार वररुचि ने प्राकृत भाषा के जो लक्षण दिये हैं उनके आधार से वे दक्षिण प्रदेश (महारष्ट्र विध्यागारे के दक्षिण का प्रदेश) के निवासी थे ऐसी संभावना हो सकती है-यह ए अनुमान मात्र है । वे दक्षिण प्रदेश के हो और दक्षिण में 'य' श्रति की यह प्रवृत्ति विद्यमान न हो ऐसी शंका की जा सकती है। परन्तु दक्षिण के शिलालेखों में प्रथम शताब्दी ई. स. पूर्व से ही इस प्रवृत्ति के उदाहरण मिलते हैं। (i) अय---सोपारय. (शूर्पारक) -L 11 19 नानाघाट ]I आय-नाय (नाग) L 1078 भाजा 2. Historical Grammar of Inscriptional Prakrits: Poona, 1948, pp. 271-276 M. A. Mehendale,
SR No.520767
Book TitleSambodhi 1990 Vol 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1990
Total Pages151
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size6 MB
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