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दोहा-पाहुड गमणागमणविवज्जियउ जो तइलोयपहाणु । गंगइ (?ड) गरुवइ(१ड) देउ किउ सो सणाणु अयाणु ॥१३७ पुणेण होइ विहओ विहवेण मओ मएण मइमोहो । मइमोहेण य णरयं तं पुण्णं अम्ह मा होउ ॥१३८ कासु समाहि करउं को अंचउं । छोपु अछोपु भणिवि को बचउ ॥ हल सहि कलह केण सम्माणउं । जहिं जहिं जोवउ तहिं अप्पाणउं ॥१३९ जइ मणि कोहु करिवि कलहीजइ । तो अहिसेउ णिरंजणु कीजइ ॥ जहिं जहिं जोयउ तहिं णउ को वि उ । हउं ण वि कालु वि मज्झु वि को वि उ ॥१४० णमिओ सि ताम जिणवर जाम ण मुणिओ सि देहमज्झई । जइ मुणिउ देहमज्झ ता केण णविज्जए कस्स ॥१४१ ता कप्पवियप्पा कम्मं अकुणंतु सुहासुह जणयं । अप्पसरूवा सिद्धी जाम ण हियए परिप्फुरइ ॥१४२ गहिलउ गहिलउ जणु भणइ गहिलउ मं करि खोहु । सिद्धिमहापरि पइसरइ उप्पाडेविणु मोहु ॥१४३ अवधउ अक्खरु जं उप्पज्जइ । अणु वि किं पि अण्णाउ ण किज्जइ ॥ आयई चित्ति लिहि मणु धारिवि । सोउ णिचितिउ पाय पसारिवि ॥१४४ किं बहुएं अडवड वडिण देह ण अप्पा होइ । देहहं भिण्णउ णाणमउ सो तुहुं अप्पा जोइ ॥१४५ पोत्था पढणि मोक्खु कहं मणु वि असुद्धउ जासु ।। बहुयारउ लुद्धउ णवइ मूलहिउ हरिणासु ॥१४६ दयाविहीणउ धम्मडा णाणिय कह वि ण जोइ । बहुएं सलिलविरोलियइं करु चोप्पडा ण होइ ॥१४७