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________________ रामसिंह-मुणि-विरइय जसु जीवंतहं मणु मुवउ पंचेंदियहं समाणु । सो जाणिज्जइ मोक्कलउ लद्धउ पहु णिव्वाणु ॥१२३ किं किज्जइ बहु अक्खरहं जे कालिं खउ जंति ।। जेम अक्खणरु संतु मुणि तव वढ मोक्खु कहंति ॥१२४ छहदसणगंथि बहुल अवरुप्परु गज्जति । जं कारणु तं इक्कु पर विवरेरा जाणंति ॥१२५ सिद्धंतपुराणहं वेय वढ वुझंतहं णउ भंति ।। आणंदेण वि जाम गउ ता वढ सिद्ध कहति ॥१२६ सिव सत्तिहिं मेलाबडा इहु पसुवाह मि होइ । भिणिय सत्ति सिवेण सिहु विरला बुज्झइ कोइ ॥१२७ भिण्णउ जेहिं ण जाणियउ णियदेहहं परमत्थु । सो अंधउ अवरह अंधयह किम दरिसावइ पंथु ॥१२८ जोइय भिण्णउ झाय तुहं देहहं ते अप्पाणु । जइ देहु वि अप्पउ मुणहि ण वि पावहि णिव्वाणु ॥१२९ छत्तु वि पाइवि मुगुरुवडा सयलकालसंतावि । णियदेहडइ वसंतयह पाहणवाडि वहाइ ॥१३० मा मुट्टा पसु गरुवडा सयल काल झंखाइ । णियदेहहं मि वसतयह सुण्णा मढ सेवाइ ॥१३१ रायवयल्लहिं छहरसहिं पंचहिं रूवहिं चित्तु । जासु ण रंजिउ भुवणयलि सो जोइय करि मित्त ॥१३२ तोडेवि सयल वियप्पडा अप्पहं मणु वि घरेहि ।। सोक्खु णिरंतरु तहिं लहहि लहु संसारु तरेहि ॥१३३ अरि जिय जिणवरि मणु ठवहि विसयकसाय चारहि ।। सिद्धिमहापुरि पइसरहि दुक्खह पाणिउ देहि ॥१३४ मुंडियमुडिय मुडिया सिझ मुंडिउ चित्त ण मुंडिया । चित्तहं मुंडणु जि कियउ संसारह खंडणु ति कियउ ॥१३५ अप्पु करिज्जइ काइं तमु जो अच्छइ सव्वंगु संतें । पुण्णविसज्जणु काई तमु जो हलि इच्छइ परमत्थें ॥१३६ . .
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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