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दोहा-पाहुड
सव्ववियप्पहं तुट्टाहं चेयणभावगयाहं । कीलइ अप्पु परेण सिहु णिम्मलझाणठियाहं ॥११० अज्जु जिणिज्जइ करहुलउ लइप(?य)ई देविणु लक्खु । जित्थु चडेविणु परममुणि सव्व गया गयमोक्खु ॥१११ करहा चरि जिणगुणथलिहिं तवविल्लडिय पगाम । विसमी भवसंसारगइ उल्लू रियहि ण जाम ॥११२ तव दावणु वय जिल्लडइ समदम कियउ पलाणु । सजमघरह उमाहियउ गउ करहा णिवाणु ॥११३ एक ण जाणहि वट्टडिय अवरु ण पुच्छहि कोइ । अडवियद्यहं डुंगरह णर भंजंता जोइ ॥११४ वट्ट जु छोडिवि मउलियउ सो तरुवरु अकयत्थु । रीणा पहिय ण वीसमिय फलहिं ण लायउ हत्थु ॥११५ छहदसणधंधइ पडिय मणहं ण फिट्टिय भंति । एक्कु देउ छहभेउ किउ तेण ण मोक्खहो जति ॥११६ अप्पा मिल्लिवि एक्कु पर अण्णु ण वइरिउ कोइ । जेण विणिग्मिय कम्मडा जइ पर फेडइ सोइ ॥११७ जइ वारउं तो तहिं जि पर अप्पहं मणु ण धरेइ । विसयह कारणि जीवडउ णरयह दुक्ख सहेइ ॥११८ जीव म जाणहि अप्पणा विसया होसहि मज्झु । फल किंपाकहि जेम तिम दुक्ख करेसहिं तुज्झ ॥११९ विसया सेवहि जीव तुहुं दुक्खहं साहि(?) करण । तेण णिरारिउ पज्जलइ हुववहु जेम घिएण ॥१२० असरीरहं संधाणु किउ सो धाणुक्कु णिरुत्तु । सिवतत्ति जि संधियउ सो अच्छइ णिच्चिंतु ॥१२१ हलि सहि काई करइ सो दप्पणु । जहिं पडिबिंबु ण दीसइ अप्पणु ॥ 'धंधवालु मो जगु पडिहासइ । धरि अच्छंतु ण घरवइ दीसइ ॥१२२