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________________ रामसिंह-मणि-विरइय सो जोयउ जो जोगवइ णिम्मलि जोइय जोइ । जो पुणु इंदियवसि गयउ सो इह सावयलोइ ॥९६ बहुयइं पढियई मूढ पर तालू, सुक्कइ जेण । एक्कु जि अक्खरु तं पढहु सिवपुरि गम्मइ जेण ॥९७ अन्तो णस्थि सुईणं कालो थोओ वयं च दुम्मेहा ।। तं णवर सिक्खियव्वं जिजरमरणक्खयं कुणहि ॥९८ णिल्लक्खणु इत्थीबाहिरउ अकुलीणउ महु मणि ठियउ । तसु कारणि आणी माहू जेण गवंगउ संठियउ ॥९९ हउं सगुणी पिउ णिग्गुणउ णिलक्खणु णीसंगु । एकहिं अंगि वसंतयहं मिलिउ ण अंगहिं अंगु ॥१०० सव्वहिं रायहिं छहरसहिं पंचहिं रूवहिं चित्तु । जासु ण रंजिउ भुवणयलि सो जोइय करि मित्तु ॥१०१ तव तणुअं मि सरीरयहं संगु करि हिउ जाहं । ताहं वि मरणदवक्कडिय दुसहा होइ णराहं ॥१०२ देह गलंतहं सवु गलइ मइ सुइ धारण घेउ । तहिं तेहई वढ अवसरहिं विरला सुमरहिं देउ ॥१०३ उम्मणि थक्का जासु मणु भग्गा भूवहिं चारु । जिम भावइ तिम संचरउ ण वि भउ ण वि संसारु ॥१०४ जीव वहति णरयगइ अभयपदाणे सग्गु । वे पह जवला दरिसियई जहिं भावइ तहिं लग्गु ॥१०५ सुक्खअडा दुइ दिवहडइं पुणु दुक्खहं परिवाडि । हियडा हउं पइं सिक्खवमि चित्त करिज्जहि वाडि ॥१०६ मुढा देह म रज्जियइ देह ण अप्पा होइ । देहहं भिण्णउ णाणमउ सो तुहूं अप्पा जोइ ॥१०७ जेहा पाणहं झुपडा तेहा पुत्तिए काउ । तित्थु जि णिवसह पाणिवह तहिं करि जोइय भाउ ॥१०८ मूलु छंडि जो डाल चडि कहं तह जोयाभासि । चीरु ण वुणणहं जाइ वढ विणु उट्टियई कपासि ॥१०९
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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