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३पेन्द्रकुमार पगारिया
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30. एक पक्ष यक्ष, महारिका, क्षेत्रपाल और गोत्रदेव की पूजा तथा श्राद्ध आदि को मान्य रखता है तो दूसरा पक्ष इसे मिथ्यात्व कह कर इसका निषेध करता है।
31. एक पक्ष पूराने वस्त्रों को ही ग्रहण करता है तो दूसरा पक्ष साधु को नूतन वस्त्र ही ग्रहण करने का विशन करता है।
32. एक पक्ष ग्रहण के समय स्नात्र पूचा पढाता है तो दूसरा पक्ष ग्रहण के समय पूजा आदि का निषेध करता है।
33. एक पक्ष के साधु वर्ष में दो बार केशलुचन करते हैं तो कुछ साधु वर्ष में तीन बार लोच का विधान करते है।
34. एक पक्षवाले साधु श्रावको के द्वारा उठाई जाती हुई पालखी में बैठते है तो दूसरा पक्ष उसे साधुके लिये अकल्पनीय मानता हैं।
35. एक पक्ष चन्दन से चरणपूजा करवाता है तो दूसरा पक्ष उसका निषेध करता है।
36. एक पक्ष प्रणिधान दंडक की दो गाथा ही बोलता है तो दूसरा चार गाथा बोलता है।
37. एक शेष फाल में भी पोद फलक आदि ग्रहण करता है तो दूसरा निषेध करता है।
38. एक साधु रजोहरण की शिकाओं को लम्बी, तथा पतली बनाता है तो दूसरा पक्ष ऐसा नहीं करता.
39. एक पक्ष रजोहरण को एक, ही बन्ध से बांधता है तो दूसरा पक्ष दो-बन्ध से बांधता है। ___40. एक पक्ष महानिशीथ -सूत्र को प्रमाणभूत मानता हैं तो दूसरा पक्ष महानिशीथ को प्रमाणभूत नहीं मानता।
41. एक पक्ष मस्तक पर कपूर डालता हैं, तो दूसरा उसका निषेध करता है ।।
42 एक पक्ष नेपाल की कम्बल को ग्रहण करता है तो दूसरा पक्ष नेपाल की कम्बल को ग्रहण करना अपनीय मानता है। .
43. एक पक्ष में आचार्य स्वयं जिन बिम्ब की पूजा करता है तो दूसरा पक्ष साधुओं। को पूजा का निषेध करता है।
44. एक पक्ष भक्षसमवसरण में पूजा करता है तो दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता।:45. एक पक्ष गुरू परमरागत मंत्रपटकी पूजा करता है तो दूसरा पक्ष ऐसा नहीं करता ।
46. भावक के पुत्र के नामकरण, विवाह आदि के अवसर पर एक पक्षवाले. वासक्षेप करते हैं तो दूसरा पक्ष उसका निषेध करता है । ___47. एक पक्षवाले गद्दी पर बैठते हैं तो दूसरा पक्ष गद्दी पर बैठना शास्त्र विरूद्ध बताते हैं।
. 148 एक पक्ष पेसा मानता है कि वेविका में (नन्दि में) रखा हुआ सभी द्रव्य गुरू का हो जाता है। दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता।