________________
शतपदी प्रभोर पद्धति एक अवलोकन
४९
14. एक पक्ष एक गूढमण्डप तथा तीन द्वार बनाने का विधान करता है दूसरा पक्ष एक ही द्वार का विधान करता है।
15. एक पक्ष एक मन्दिर में एक ही प्रतिमा की स्थापना करता है तो दूसरा पक्ष अनेक प्रतिमा की स्थापना करता है ।
16. कुछ लोग सामायिक ग्रहण करने के पूर्व आवक को इयधिक करने का विधान करते हैं तो दूसरे लोग सामायिक ग्रहण करने के बाद इर्यापथिक कहते हैं ।
17. एक पक्ष मन्दिर के लिए कुआं बचा साखरंच, ग्राम, गोकुल तथा सेत भादि देने या बनवाने में पाप नहीं मानता है तो दूसरा पक्ष इन प्रवृत्तियों को साय प्रवृत्तियाँ कह कर उसका निषेध करता है ।
18. एक पक्ष बिन पूजा के समय श्रावक को पगडी टोपी रखने की बात करता है तो दूसरा पक्ष उत्तरीय वस्त्र का विधान करता है ।
19. एक पक्ष भावक को तथा सौभाग्यवती श्री को ही कदन प्रतिक्रमण करने का विधान करता है तो दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता
20. एक पक्ष भारती को निर्माल्य मानकर एक ही भारती से अनेक जिन बिम्बों की भारती उतारता है तो दूसरा पक्ष प्रत्येक बिम्बों की अलग अलग आरती उतारता है ।
21. एक पक्ष उत्तरशाटिका कोई छ हाथ की कोई पाँच हाथ की तो कोई चार हाथ की ग्रहण करता है। दूसरा पक्ष ऐसा नहीं मानता
*
22. एक पक्ष खुले मुख से बात करने में पाप नहीं मानता तो दूसरा पक्ष खुले मुख से बोलने में पाप मानता है ।
23. एक पक्ष एक पटी मुखवा का विधान करता है तो दूसरा पक्ष दो परि मुख्यस्त्रिका को मानता है।
24. एक व्यक्ति स्नात्रकाल में पर्व तिथि को ग्रहण करता है दूसरा सूदि से प तिथि को ग्रहण करता है। तीसरा पक्ष सायकाल में प्रतिक्रमण के समय तिथिग्रहण करता है । 25. एक पक्ष चतुर्दशी का क्षय होने पर त्रयोदशी को प्रतिक्रमण करता है तो दूसरा पक्ष पूनम को प्रतिक्रमण करता है।
रखता है। तो दूसरा बिलकुल नहीं रखता ।
26. एक पक्ष एक पटलक 27. एक पक्ष श्रावण या भाद्रपद का मानना है तो दूसरा पक्ष 69 वे दिन
अधिक मास होने पर 49 वें दिन पण पर्व मानता है।
28. एक पक्ष एक गच्छ में एक आचार्य तथा एक ही महत्ता का होना मानता है । तो दूसरा पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार कई आचार्य एवं कई मराओं की स्थापना करता है । पूर्णिमा गच्छवाले एक गच्छ में अनेक भावार्य मानते हैं किन्तु एक ही महत्तरा होने का विधान करते हैं।
29 एक पक्ष अष्टमी, चौदस, पुनम तथा अमावास्या को ही शास्त्रोक्त तिथि मानता है तो दूसरा पक्ष द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी ऐनी पाँच तिथि मानता है ।