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शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति-एक अवलोकन
7. खतरगच्छमतमीमांसा 8. दिगम्बरमत समीक्षा 9. अंचलगच्छ तथा बहद्गच्छ की उत्पत्ति का इतिहास
इन सब बातों का आ० महेन्द्रसिंह सूरि ने तुलनात्मक एवं ताविक रूप से आगमों के उद्धरण के साथ विवेचन किया है । आगम, नियुक्ति, चर्णि,भाष्य एवं टीकाओं का तथा प्रकरण ग्रन्थों का गहराई के साथ अध्ययन कर अपनी मान्यताओं को शास्त्र प्रमाणों से सिद्ध किया है। शतपदी में करीब सौ ग्रन्थों के नाम और उनके उद्धरण प्रस्तुत किये हैं।
इन्होने जिन ग्रन्थों के उद्धरण दिये हैं उनमें से कुछ ग्रन्थ शतपदीकार के समय मौजूद थे किन्तु वर्तमान में अनुपलब्ध है। जैसे_1. प्रतिष्ठाकल्प (आ० हरिभद्रसूरि)
2. ,,, (समुद्राचार्य) 3. सम्यक्त्वकुलक (पूर्णिमा १० वर्द्धमानाचार्य) 4. आवश्यकमीमांसा (चिरन्तनाचार्य) 5. दर्शनसत्तरि (वर्धमानाचार्य) 6. आवश्यक टिप्पणक 7. योगसंग्रह 8. योगसंग्रहचणि 9. चिरन्तन कल्पवल्ली (44000 हजार इलोक प्रमाण ग्रन्थ) 10 यापनीयतंत्र 11. जीवाभिगम चर्णि 12. छेद सूत्र की हुण्डियाँ आदि...... उपलब्ध किन्तु अप्रकाशित ग्रन्थ ये हैं1. व्यवहारसूत्र चर्णि 2. पंचकल्प चणि 3. महानिशीथ सूत्र (जर्मन में प्रकाशित) 4. पाक्षिक चूर्णि 5. कल्पसामान्य चूर्णि 6. कल्पविशेष चूर्णि 7. पञ्चाशक टीका आदि
हमें इन अनुलब्ध ग्रन्थों का पता लगाना चाहिए । तथा उपलब्ध अप्रकाशित ग्रन्थों को प्रकाशित करना चाहिए ।
आचाय महेन्द्रसिंह सूरि का समय वि. सं. 1237-1309 तक का है। इनके समय में मूर्तिपूजक समाज 84 गच्छों में विभक्त था । 84 गच्छों की विभिन्न मान्यताएँ उनके आचार, विचार उस समय के जैन समाज में प्रचलित थे। आचार एव विचारभेद के कारण एक गच्छ दूसरे गच्छ के साथ वाद विवाद करता था। एक आचार्य दूसरे आचाय के