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________________ रूपेन्द्रकुमार पगारिया 17. संवरसरि तक में साधु को अवश्य लोच कर लेना चाहिए । 18. कारणवश साधु मधुर, स्निग्ध और पौष्टिक आहार भी कर सकता है । 19. साधु को नैनत्य दिशा में ही स्थं डल जाना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं हैं। अनुकूलता न हो तो अन्य दिशा में भी स्थंडिल जा सकता है। 20. साधुओं को एकांगिक रजोहरण नहीं मिले तो अनेकानिक, भी ग्रहण कर सकता है। 21. साधु तुम्बे के पात्र के सिवा अन्य भालेपित पात्र में भी भोजन कर सकता है । 27. साधु भिक्षा के लिए गांडे लगाकर झोली बना सकता हैं । 23. साधु दशायुक्त वस्त्र ले सकता हैं किन्तु उसका उपयोग नहीं कर सकता । 24. सामान्यतः साधु, साध्वी को नहीं पढ़ा सकता किन्तु कारणवश उन्हें पढ़ा सकता है और आगम की वाचना भी दे सकता है। 25. कारणवश साधु प्रावरण (कम्बल या दुशाला) भी ओर सकता है। 26. साधुओं को जैनकुलों में ही भिक्षा लेनी चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं है । साधु जैनेतरकुलों में भी भिक्षा ले सकता है । 27. बीमारी आदि कारण से साधु फलादि भी ग्रहण कर सकता है। 28. साधु को तृतीय प्रहर में ही भिक्षा के लिए जाना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं है अन्य प्रहर में भी भिक्षा के लिए जा सकता है। 29. साध्वी जिस क्षेत्र में निवास करती हो उस क्षेत्र में साधु को नहीं रहना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं हैं। 30. एक ही घर में एक से अधिक संघाडे को नहीं जाना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं है। _31. साधु को संसृष्ट हाथ से या संस्कट कडछी आदि से ही आहार लेना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं है । असंसृष्ट हाथ या कड़छी से भो साधु आहार ग्रहण कर सकता है। 32. समर्थ होने पर भी यदि साधु या श्रावक पव दिनों में तप नहीं करता है तो वह प्रायश्चित्त का अधिकारी होता है । यह नियम बाच, वृद्ध ग्लान आदि के लिए लागू नहीं होता। ____33. नमोत्थुणं में “दिवात्ताण' सरण गई पाहा" नमो जिनाण' जीय भयाण तथा "जे अइयासिद्धा" ये जो पाठ है, उन्हें नहीं बोलने चाहिए । 34. नमुक्कार मंत्र में "हवह मंगल" के स्थान में "होइ मंगले" ही बोलना चाहिए । 35. साधु को एक ही बार भोजन करना चाहिए यह एकान्त नियम नहीं है। कारणवश वह एक से अधिक बार भी आहार कर सकता है। इसके अतिरिक्त इन्होने निम्न बातों पर अपने मंतव्य लिखे हैं--- 1. जिनाज्ञा की प्रमाणता 3. आचरणा वैचित्र्य विचार 3. असठाचरण के लक्षण तथा उसके दृष्टान्त 4. हरिभद्रसूरि तथा देवसूतिकी आचरणा विषयक अपने विचार । 5. मुनिचन्द्रसूरि तथा देवसू की आचरणा विषयक अपने मंसध्य । 6. उपदेशमाला विषयक अपने विचार ।
SR No.520763
Book TitleSambodhi 1984 Vol 13 and 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1984
Total Pages318
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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