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शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति एक अवलोकन
दो से कम साधुओं को एवं तीन से कम साध्वियों को नहीं विचरणा चाहिए । चातुर्मास के पश्चात् शेष काल में भी साधु साध्वी पीठ, फलक आदि का उपयोग कर सकते हैं ।
साधु को अपने उपाश्रयों में गीत, नृत्य वाद्यवादन आदि नहीं करवाना चाहिए । साधु तथा साध्वी को कमाडवाली वस्ति में ही रहना चाहिए ।
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कुछ आचार्य दीक्षा लेने के बाद साध्वी का प्रथम लोच स्वयं अपने हाथों से करते थे । शतपदीकार ने कहा- साध्वी का लोच साध्वी को ही करना चाहिए । साधुओं को नहीं जो ऐसा करते हैं वे शास्त्र विरुद्ध करते हैं ।
साधु को हाथ पैर आदि नहीं धोने चाहिए | क्योंकि शास्त्र में साधु को हाथ पैर धोना मना हैं |
भिक्षा लाने के समय में ही साधु को आहार करना चाहिए । अन्य समय में नहीं । शतपदीकारने साधुओं के आचार में निम्न अपवाद भी सूचित किये हैं ।
1. साधु पुस्तक, लेखनी, स्याही तथा उनकी सुरक्षा के उपकरण रख सकता है । 2. पात्र में लगाने के लिए यदि खंजण लेप नहीं मिलता हैं तो अन्य लेप भी लगा सकता हैं ।
3. साधु कारणवश स्थिर (भीत स्तंभ ) अथवा चल पीठ फलक का आधार लेकर बैठ सकता है ।
4. यदि साधु को ऋषभ कल्पनावाली वसति नहीं मिलती हैं तो वह अन्य वसति मैं भी रह सकता हैं ।
5. बाहर वर्षा वरस रही हो तो भी साधु उपाश्रय में आहार कर सकता है ।
6. सूत्रार्थ पौरूषी में भी साधु धर्मदेशना दे सकता है ।
7. कारणवश साधु, सूत्रपौरूषी में अर्थ और अर्थ पौरूषा में सूत्र पढ सकता है ।
8. साधु मात्रक, वासत्राण घडा, सूई, कैची, कर्ण राधिका, पादलेखनिका आदि उपकरण अपने पास रख सकता है ।
9. कारणवश साधु मासकल्प को कम या अधिक भी कर सकता है ।
10. नीमोदक से भी साधु वस्त्र आदि धो सकता है | ( नीनोदक छत से गीरा हुआ वर्षा का पानी ) ।
11. कारणवश साधु अपने निवास का द्वार बन्द कर सकता है और खोल भी सकता है । 12. कारणवश साधु पासस्थे (शिथिलाचारी) को वन्दन कर सकता उनसे बातचीत भी कर सकता है और उनकी वसति में निवास भी कर सकता है ।
13. तुम्बे का कण्ठ सीना या उसमें दोरा बान्धना शास्त्र विरूद्ध नहीं है ।
14. चूहे आदि से बचने के लिए साधु अपने आहार आदि को खूंटी पर भी टांग सकता है ।
15. कारणवश साधु अपने पास औषध आदि भी रख सकता है । - 16. साधु लेख या सन्देश भेज सकता है ।