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________________ अरविंद कुमार सिंह द्विधारमस्तस्य मानान्न्यार्चित दृष्ट्वा अवंतीपुरं कलधारण दुर्गाणामिति कल्पयन निर्मालवान् से हेना मन्यवि प्रीत्याप्यषन जीर्ण ० द्विधारसस्तस्य मानान्यचित अष्टामवंतीपुर कर्तु धारण दुर्माणामिति कल्पयन् निर्मालवान् सेहे न नाम(मा)न्यपि प्रीत्या पश्यन् नीर्ण प्रद्योतः भकल्या शैलसोभं खेलखलखेचर कपिशीकृताकृति अत्यन्त सुभगे भैगिरत्र संसाधित देवोयं समूद्रवसना हेमदिमडंयत्यययं तवन्नद्यदिदं . महाप्रबन्ध कविचक्रवर्ति प्रशास्तिमेताम द्विजन्नमनो लेखिोयममिति सुदि १० मंगल महा श्री प्रथोतः भक्त्या शैलशोभ खेलस्खलखेचर कपिशीकृताकृतिः अत्यंत सुभगोगैर शंसाधितः देवोऽयं समुद्रवसना हेमाद्रिमयत्ययं तावनंद्यादिदं महाप्रव(ब) धः कविचक्रवर्ती प्रशस्तिमेताम द्विजन्मनो लेखिरोयामिति । (स) दि १ मंगलं महाश्रीः
SR No.520763
Book TitleSambodhi 1984 Vol 13 and 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1984
Total Pages318
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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