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________________ अरविन्द कुमार सिंह के चौलुक्य शासक त्रिलोचनपाल का शक संवत् ९७२ (ई. १०५०) का ताम्रपत्र लेख' ब्रह्मा के चुलुक में लिए जल से उत्पत्ति का उल्लेख करता है । विक्रमांकदेवचरित (प्रायः ई० १०८५) में कश्मीरी कवि विल्हण ने सध्या करते समय इन्द्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा के चुलुक जल से उत्पन्न वीर से कर्णाट के चुलुक्य वंश का आरम्भ बताया है। कुमारपाल को वडनगर प्रशास्त' (स. १२०८/ ई. ११५१) में दैत्यों द्वारा देवताओं को अत्यधिक सताए जाने पर, उसने मुक्ति पाने के लिए विधाता से प्रार्थना करने पर ब्रह्मा के चुलुक जल से उत्पत्ति का समर्थन है । बालचन्द्रसूरिकृत बसन्तविलास (प्रायः इ०१२४८), पूर्णगच्छीय हेमचन्द्राचार्यकृत द्वाश्रयकाव्य के टीकाकार अभयतिलक गणि' (३० १२४९), नागेन्द्रगच्छीय भेस्तुगाचार्यकृत प्रबन्धचिन्तामणि (स. १३६१/ ई०१३०५)को चौलुक्यों की उत्पत्ति सम्बन्धी कथा वडनगर प्रशस्ति के समान ही है । यह चौलुक्य अभिधान का पौराणिक ढंग का खुलासा मात्र है। पद्य ५-२२ गुजरात के चौलुक्य नरेशों की वंशावली तथा उनकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालता है । अधिकांश विवरण यशोगाथा के रूप में है । सर्वप्रथम चौलुक्य वंश के आदि पुरुष मूलराज के पराक्रमों का वर्णन है; तत्पश्चात् अनुगामी राजामौ चामुण्डराज, वल्ल भराज, दुर्लभराज, तथा नागराज का संक्षिप्त वर्णन है । पद्य ११-१२ से भीमदे की सिन्धु, लाट, और मालव नरेशों पर विजय की जानकारी होती है। मेस्तुगाचार्य ने भी भीमदेव की सिन्धु और मालव नरेश भोज पर विजय का वर्णन किया है। डॉ. अशोक कुमार मजुमदार साहित्य में वर्णित भीम द्वारा पराजित हम्मुक को सौराष्ट्र स्थित सैन्धव वश का राजा मानते हैं। कण देव के सन्दर्भ में यहाँ केवल गतानुगतिक प्रशंसाएँ हैं । पद्य १४-२२ जयसिंह सिद्धराज की अवन्तीपुर, धारा और मालब भूमि की प्रसिद्ध विजय के साथ अन्य उपलब्धियों का प्रश'सात्मक उल्लेख करता है। मालव विजय तथा मालवराज को बन्दी बनाए जाने का उल्लेख चौलुक्य जयसिंहदेव के दोहद अभिलेख11 (स०११९६/ई० ११४०), उपर कथित बडगाप्रशस्ति, वसन्तविलास और द्वाश्रयकाव्य में भी है । सोमेश्वरकृत कीर्तिकौमुदी (प्रायः ई. १२२५) तथा कृष्णगच्छीय जयसिंहसूरिकृत कुमारपाल भूपालचरित। (स०१४२२/ई० १३६६) में जयसिंह द्वारा पराजित मालव शासक नरवर्मा (प्रायः ई० १०९४११३३) बताया गया है, जबकि प्रबन्धचितामणि के अनुसार पराजित मालव नरेश यशोवर्मा (प्रायः इ० ११३३-४२) था | अतः अनुमान होता है कि माल्व पर नरवर्मा से यशोवर्मा के समय तक एक से अधिक आक्रमण जयसिंह सिद्धराज द्वारा किए गए थे, जो इन दोनों का समकालीन (प्रायः ई०१०९३-११४३) रहा। २३ वा पद्य विरूपाक्ष के जीर्ण भवन का उल्लेख करता है। एस. के. सिंह ने परमार युग में निर्मित (प्रायः१०४५ ई. में पूर्ण) प्राचीन देवालय तथा जयसिंह सिद्धराज के समय तक मन्दिर के इह जाने के बाद भी म'डप की सलामती का विवरण दिया है। परन्तु अभिलेख (२४-२७ पद्य , से विशाल शिखर वाले भव्य विरूपाक्ष मन्दिर का सिद्धराज द्वारा सम्पूर्ण निर्माण अभिप्रेत है।
SR No.520763
Book TitleSambodhi 1984 Vol 13 and 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1984
Total Pages318
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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