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रसेश जमीनदार
हस्तिशाला के सूर्य-चंद्र की
१० सुरही > सुरभी > गाय का उल्लेख याना है । विमल मंत्रीश्वर की पास के मंडप में तीन शिलाएँ खड़ी हैं, जिनमें ऊपर के भाग पर आकृतियाँ हैं । इनके नीचे सवच्छ गाय की आकृति है । उसके नीचे लेख अंकित है । इसमें से दो में तलवार का चिह्न खुदे गये हैं । यह चिह्न सिरोही के चौहाण राजवंश का राजचिह्न थी । (लेखक २४४ - २४८, भाग २ ) ।
११. उपर्युक्त शिलाओं के पास एक शिला है, जिस पर महासती की मुख की आकृति अंकित की गई है । प्रस्तुत शिला के उपर के भाग में सूर्य-चंद्र की आकृति है । इन के नीचे कंगन पहने हुए हस्त की आकृति है । इन के नीचे एक मृगल की भाकृति है जो प्रार्थना कि मुद्रा में है। अंत में सं. १४८३ का एक लेख है ।
स ंघवी असु ने इस शिला पर महासती की भुजा खुदाई थी। जिनमंदिर में इस तरह पालिया का होना असंभव है, लेकिन मुनिजी के मतानुसार ये भुषा की आकृति कोई वणिक स्त्री की होगी। आदोश्वर भगवान की भक्ति में लीन कोई सौभाग्यवती वणिक स्त्री का ईस तीर्थ पर आकस्मिक अवसान हुआ होना ऐसा संभव है । इस धर्मारमा को स्मृति में इन्हीं के कुटुंबीजनो ने यह स्मारक बनवाया होगा । (लेखांक २४९, भाग २ ) ।
१२. अर्बुदाचल के ये अभिलेखों में इस प्रदेश के शहर, नगर और गाँव के निर्देश तो होना संभव है, लेकिन इस प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के स्थल -निर्देश प्राप्त होता है । उदा० घोलका, पाटण (लेखांक २५०, भाग २) कच्छ (५०५, भाग २) पालणपुर (लेखांक २३८, ३५२, ५०५ भाग २ ) बीसलनगर ( लेखांक १२६ - १२८, भाग ५) इत्यादि ।
१३. राजकीय इतिहास को दृष्टि से गुणवसही का एक लेख (२५०, भाग २ ) अध्ययनशील है । ७४ श्लोक का इस लेख में अणहिलपत्तन की प्रशंसा, तेजपाल के पूर्वज और उनके कुटुंब का विस्तृत वर्णन वस्तुपाल तेजपाल के धार्मिक कार्यों का विवरण, धवल कपुर के सोलंकी माला राजाओं का प्रशंसा चंद्रावती के परमार राजाओं का वर्णन जैसी ऐतिहासिक सामग्री मिलती हैं इसके अलावा पाटण की प्राग्वाट ज्ञाति का वर्णन, अनुपमादेवी के पितृपक्ष की वंश- माहिती, जैन मंदिर स्थापत्य का वर्णन, दान-धर्मादा सबंधित बातें इत्यादि जैसी सांस्कृतिक सामग्री भी हमें मिलती हैं। स. १२८७ का यह सब से अधिक ध्यानाह है ।
१४. लेखांक २५१ ( भाग २ ) भी इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से अभ्यास योग्य है । सौं. १२८७ का यह लेख चौलुक्य राजा भीमदेव २ के सौंदर्भ में है । इस लेख 'में स्थलों के विशेष उल्लेख होने की वजह से उनका अध्ययन भी महत्वपूर्ण है ।
१५. जिन मंदिरों के निर्वाह के लिए जो दान दिये गये हैं इन में बाड़ी (लेखक ५१, ३१२, भाग ५) खेत (लेखांक ५५, भाग ५), गाँव (लेखांक १९४, २५१, ३६२, भाग ५), जागीर (लेखांक ३०४, भाग ५), बाव (लेखांक ४९०, भाग ५) के निदेश