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________________ रसेश जमीनदार गच्छों में तरागच्छ का निर्देश २०० से अधिक लेखों में है । खरतरगच्छ और नाणकीयगच्छ का उल्लेख ३० से अधिक बार है और अन्य गच्छो में कच्छोलीवाल, कामहाय वृहद् , नागेन्द्र, पूर्णिमा, ब्रह्माणीय, मडाहइ और स डर के उल्लेख मुख्य है । ओसवाल, प्राग्वाह श्रीमाल ए तन ज्ञातियो के अलावा हमें कसारा, गुर्जर, चौहाण चालुक्य, भावसार इत्यादि नाम मिलते है । ओमवाल और प्राग्वार के भिन्न भिन्न रूप से लिखे गये नाम भी मिलते हैं। राजाओं के जो नाम इन अभिलेखों से प्राप्त हुए हैं, वे इस प्रकार है : अकबर, अक्षयराज (अखेराज), कुंभकरण, जगमाल, डुगरसिंह, लुद (लु भक), सोमदास इत्यादि । गांची के नाम इस प्रकार प्राप्त होते है . अचलगढ, अहमदाबाद, अणहिलपाटक, अबुद-आवु-अर्बुदाचल, आगसणा, इडर, कच्छ, चंद्रावती, जीरापल्ली-जीरावला, डुगरपुर, देलवाडा, धणेरी-धनारी, नंदीग्राम, नागोर, पालणपुर-प्रहलादनपुर, पत्तनगर, पींडवाडा, भालवदेश, घभिणवाड, वीरवाडा, वीसलनगर, शत्रुजय, सांगवाडा, सिरोटी, स्तमन-स्तंभतीर्थ इत्यादि ! ५.२ स्थल-व्यक्ति-नाम का अध्ययन आचार्यों, गम्छों, जाति-कुल-वंश, गांव-नगर, गोत्र-शाखा, राजा इत्यादि नाना प्रकार के नामों का अध्ययन रसद तो है ही लेकिन इस प्रकार के अध्ययन से हमें उस काल में व्यक्तिनाम और स्थलविशेष के नामों से नामकरण की भात को भी पता चलता है और हमें समकालीन संस्कृति के विविध पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है, जिससे राजकारण, धर्म, देवी-देवता, भाषा, भूगोल इत्यादि का भी सारा ज्ञान प्राप्त होता है। इन दोनों ग्रंथों का प्लस-नेस स्टडी के दृष्टि से अभ्यास करने की भारी आवश्यक्ता महसूस होती है । अध्ययन का यह क्षेत्र (onomastics) अधिक प्रचार में लाने की आवश्यकता है। ५.३ जैन संप्रदाय का ज्ञान इन दोनों ग्रंथों के अध्ययन से हमें वेतांबर जैन संप्रदाय का अच्छा ज्ञान होता है और जैनों की सांस्कारिक सपत्ति की भी जानकारी होती है । ग्याहरवीं सदी से लेकर जैन धर्म का प्रभाव अदाचल क्षेत्र में क्रमशः किस तरह बढा, आचार्यो और मुनिराजों ने भावको के उत्साह के साथ जिन-मंदिरों का किस तरह निर्माण किया, जीर्णोद्धार वा कार्य किस तरह बदा, धर्म-प्रभावका विकास कैसे हुआ - इन सब बातो की बहुमूल्य सामग्री प्राप्त होती है और इन का अध्ययन करना भी जरूरी है। मूर्तिविज्ञान और स्थापत्यकला का अध्ययन करने की प्रेरणा भी इस अभ्यास से प्राप्त होती है । जैन मजीओ, भांडागारिको, सांधिधिग्रहको, दाणिको इत्यादि ने अपने अपने प्राप्त अधिकार की हैसियत से जैन समाज का विकास कसे किया और किस प्रकार का आर्थिक योग प्रदान किया और अपने प्रभाव से कितने नरेशों को जैनधर्म के प्रति आकर्षित किया, इनकी माहिती भी इन ग्रंथों के अध्ययन से प्राप्त होती है । इन ग्रयों के अध्ययन से जो विशेष शान प्राप्त होता है, इनमें से कई इस प्रकार है
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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