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बनारस-कम्पनी शैली की चित्रकला
संकचित नहीं था। उन्होने उस समय के समाज से अपनी तुलिका का सामजस्य स्थापित कह लिया था इसीलिये उन्होंने तत्कालीन समाज का सुन्दर एव सचीव चित्रण प्रस्तुत किया है । इस शैली की चित्रकला ने महाराज ईश्वरीनारायणसिंह के राज्यकाल में काफी प्रगति की और कलाकारों ने भी अपनी कला प्रतिभा का सर्वोत्तम प्रदर्शन किया। साथ ही यह भी सत्य मानना पड़ेगा कि यह कला महाराज ईश्वरीनारायणसिंह के समय में चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुयी और उन्हीं के साथ खत्म हो गयी ।
दरबारी चित्रकारों के अलावा बनारस में आजाद कलम वाले चित्रकारों की कमी नहीं थी ईन चित्रकारों को भी महाराज से काफी प्रोत्साहन मिला और इन चित्रकारों ने भी अपने राजा और ममान को अपनी कलम मे निराश नहीं किया, अपनी नैसर्गिक कला का खुले दिल से मुक्त हस्त मे प्रदर्शन किया । चित्रों (कम्पनो शैली) के समूचे संग्रह को देखने और अध्ययन करने के पश्चात् यह प्रश्न उठना है कि बनारस के कलाकार नाही सौन्दर्य की अभियुक्ति और उनके अंकन को अपने चित्रों में स्थान क्यों नहीं दिया ।
पाद टिप्पणी
(१)
आर
सी.
आर सी. मजुमदार द्वारा सम्पादित, दी मुगल अम्पायर, बम्बई, १९७४, पृ. ५१५, तेजनारायणमिश्र, 'कम्पनी शैली का इतिहास एवं केन्द्र' पृ. १३९, श्याम बिहारी
अग्रवाल द्वारा सम्पादित, रुपशिल्प, इलाहावाद, १९८६ (२) रायकृष्णदास, भारत की चित्रकला, इलाहावाद, १९७४, पृ. ९४ से १०५ तक;
श्यामबिहारीअग्रवाल द्वार सम्पादित रुपशिल्प, पृ. १४१ रायकृष्णदास, भारत की चित्रकला पृ ११० मिल्डर्ड, प्रार्चर पदनापेंटिंग, लंदन, १९४९ प्रोफेस (vii), मुल्कराज आनन्द, पल्बम आफ इन्डियन, पेन्टिग्स, दिल्ली, १९७३ पृ. १६०; डब्लु. जी आर्चर बाजार पेंटिंग आफ कलकत्ता, लंदन १९५३, पृ. ७; एफ. एम. आर्चर, इन्डियन मिनियेचर्स इन दी इन्डिया
आफिस लाइब्रेरी, लंदन, १९८१, पृ. १३०%, तेजनारायणमिश्र, 'कम्पनी शैली का इतिहास एवं केन्द्र', पृ. १४३ और १४४ । मिल्डर्ड आर्चर, कम्पनी छाइस इन द इन्डिया आफिस लाइब्रेरी, लंदन, १९७२, पृ. १३३, प्रस. के. श्रीवास्तव, 'महाराज ईश्वरीनारायणसिंह एन्ड बनारस पेन्टिग्स', नंदलाल बोस जन्म शताब्दी व्याख्यानमाला के अंतर्गत दिये गये व्याख्यान से, वाराणसी, १९८२, पृ. १, समग्र अध्ययन के लिये द्रष्टव्य तेजनारायण
मिश्र द्वारा लिखित 'बनारस में' कम्पनी शैली की चित्रकला' (अप्रकाशित) वाराणसी । (.) मिल्डर्ड आर्चर, कम्पानी ड्राइंग्स इन द इडिया आफिस लाइब्रेरी, लंडन,
१९७३, पृ. १३३ । अमोवि . १२-८