SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेजनारायण मिश्र भी सम्मान व्यक्त करते हुये उन्होने उनके साथ अपने चित्र भी बनवाये; महाराज नेपाल अभिव्यक्ति वाले चित्र भी इन कलाकारों से बनवाये, फल, पशु-पक्षियों का सुन्दर अकानी इन चित्रों में देखने को मिलता है 120 बनारस में कम्पनी शैली की चित्रकला के इतिहास की दृष्टि से महाराज श्री नारायणसिंह का समय वैसा ही है जैसा कि मुगल सम्राट जहाँगीर के समय मगल होली की चित्रकला का । इसीलिये विद्वानों ने इन्हें "कम्पनी शैली के जहाँगीर" के नाम से संबोधित किया है। 21 महाराज के चित्रकला प्रेम को प्रदर्शित करने वाले ये चित्र का ह मास की सांस्कृतिक एवं सामाजिक अभिव्यक्ति के ऐतिहासिक दस्तावेज है। महाराज इश्वरीनारायणसिंह की मृत्यु के उपरान्त भी कम्पनी शैली की चित्रकला की लो को महाराज प्रभुनारायणसिंह ने जलाये रखा। बाबू माधवप्रसादजी इनके समय में इस शैली के दरबारी चित्रकारों में से थे और माधवप्रसादजी के सुयोग्य पत्र बान रघुनाथप्रसादजी महाराज आदित्यनारायणसिंह के प्रधान चित्रकार थे 122 रानाराम नामक कम्पनी शैली के एक और चित्रकार का भी उल्लेख मिलता है ।23 इसके अलावा यमुना लाल और उनके पुत्र लक्ष्मीनारायण भी बनारस में उस शैली के प्रमुख चित्रकार थे। 24 बनारसी कलाकारों द्वारा बनाये गये कम्पनी शैली के चित्र उनके उच्चस्तरीय कौशल, चित्रकला के प्रति समर्पण एवं व्यक्ति के जीवन के इतिहास व संस्कृति के सजीव वक्ता हैं । ईन चित्रों में हम चित्रकला की विशेषताओं के साथ ही साथ पूर्व पश्चिम की बारीकियों को भी दर्शन करते है। व्यक्ति चित्रों (शबीह) के अकन में, चाहे व पेंसिल से बने हो या काली स्याही से, कलाकार ने व्यक्ति चित्रण के सभी गुण उसमें चुपचाप निरी दिये है। इस कारण चित्रों में यथार्थता का बोध परिलक्षित होता है न कि मशीनी अनुकृति का । इस प्रकार के अंकन में कलाकार ने काल्पनिकता का सहारा नहीं लिया बरन रेखाओं में गीत देकर उन्हें सजीव और सुन्दर बनाया । यहां के कलाकार कम्पनी शैली के अन्य केन्द्रों के चित्रकारों की अपेक्षा चित्रांकन में शरीर के प्रत्येक अंग में समान लय व गीत को बनाये हये हैं। किसी भी अंग के अनुपात में कमी नहीं दिखायी देती. कहने का तात्पर्य यह है कि रेखाओं के उतार चढाव में उनकी कलम (कू'ची या पेंसिल) उनके अधिकार एवं नियंत्रण में रही है, ऐसा चित्रों से भासित होता है। इन कलाकारों ने व्यक्ति ही नहीं पशु-पक्षी और फूल-पत्ती आदि के अंकन में भी यही कमाल दिखाया है। ये चित्रों की अनुकृति तैयार करने में इतने सिद्धहस्त थे कि असली नकली का फर्क बहुत सूक्ष्म एवं अनुभवी आँखे ही बता सकती हैं। बनारस के कलाकार की शांत रंग सज्जा, सादी एवं स्वाभाविक योजना चित्रकारी की आधार थी। यही यहाँ के कलाकारों की सबसे बड़ी विशेषता थी और इन्ही आधागे के मध्य से समन्वय स्थापित करते हये कलाकारों ने अपना कार्य किया। इन कलाकारों के चित्र विषय का क्षेत्र सीमित या
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy