SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेजनारायणमिश्र (६) उत्तर प्रदेश मासिक, बर्ष १, कि ९, फरवरी १९७३, सीताराम चतुर्वेदी और विश्वनाथ मुखर्जी द्वारा सम्पादित यह बनारस हैं वाराणसी, पृ ३८ । (७) एन. सी. मेहता स्टडीज इन इन्डियन पेंटिंग, बम्बई, १९२६ पृ. १२७ । (८) भारत कला भवन सग्रह की चित्र संख्या १३८५, चित्र का शीर्षक 'मीर रूस्तमअली की हाली', चित्र का माप ४०४२७ से.मी. । (९) रायकृष्णदास, 'काशी में चित्रकला', सीताराम चतुदी और विश्वनाथ मुखजी द्वारा सम्पादित, यह बनारस है. पृ ३८७ माती वन्द, काशी का इतिहास, १९६२, पृ. ३८६ और ३८७ । (१०) मिल्डई आर्चर, पटना पेंटिंग लदन, १९४७ पृ. १८, पी. मी. मानक 'दी पटना स्कूल आफ हेटिंग', जर्नल आफ विकार रिसर्च सेसिायटी, ५९४३, खंड २९, पृ. १५० (११) के. पी. मिश्रा, बनारस इन ट्रांजिशन १७३८ ---१७९५, नई दिल्ली, १९७५, पृ. २, बनारसीलाल पाण्डेय, महाराज बलवन्तसिंह और काशी का अतीत वाराणसी, १९७५ पृ. ८५ १२) रायकृष्णदाम, 'काशी में चित्रकला', पृ. ३८३ बनारसीलाल पाण्डेय, महाराज बलवन्तसिंह और काशी का अतीत, पृ. ४० सन् १७५० ईस्वी में रामनगर के किले का निर्माण कार्य महाराज बलवन्तसिंहने शुरु कराया, साथ ही किले के अन्दर एफ मदिर का निर्माण कराकर उसमें काली की मूर्ति प्रतिष्ठापित की और मदिर की दीवारों पर भित्ति चित्रण का भी सुन्दर आंकन करवाया । काशी की परम्परा रही है कि दीवारे एवं प्रवेश द्वारों पर शादी-ब्याह के अवसर पर कुम्हारों एवं नक्कशों के द्वारा मंगल कलश, गणेश, द्वारपाल, मछली, हाथी-घोर आदि के चित्र विविध रंगों के माध्यम से तैयार करवाये जाते थे तथा मदिरों--मठों व बनारस के संभ्रान्त लोगों के कक्ष में मी भित्ति-चित्रण की परम्परा रही है। इस प्रकार के उदाहरण यहाँ के मदिरों एवं मठों में आज भी देखे जा सकते हैं। यह तो निर्विवाद सत्य है कि दिवाल (मित्ति) ही नित्र बनाने का प्रथम माध्यम थी। बनारस के कलाकारों द्वारा निर्मित भित्ति-चित्र के कुछेक उदाहरण भारत कला भवन की 'बनारस दीर्घा में देखे जा सकते हैं। बनारस में इस प्रकार के चित्र राजस्थानी चित्रकला की परम्परा की देन रहै है। (१३) मिल्डड' मार्चर, पटना पेटिंग पृ १८ (१४) पी. सी. मानूफ, दी पटना स्कूल ऑफ पेटिंग, जर्नल आफ द बिहार रिसर्च सोसायटी १९४३ खंड २९ पृ १५० ।
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy