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समणी कुसुमप्रज्ञा
२ मूलाचार में आवश्यक नियुक्ति को अनेक गाथाए पायी जाती है मूलाचार की रचना द्वितीय भद्रबाहु से पूर्व की है। एसा संभव नहीं लगता कि मूलाचार में ये गाथाएं बाद में जोड दी गयी हो लेकिन गौतमस्वामी के बाद भद्रबाहु एसे आचार्य हुए हैं जिन्हे दोनों परम्परा समान रूप से सम्मान देती है । अतः भद्रबाहु प्रथम की रचना का बट्टकेर ने लिया हो यह युक्तिसंगत लगता हैं ।
३. बहरकल्प और निशीथभाष्य में अनेक स्थलों पर "पुरातणी गाहा" या "चिरंतणा गाहा" का संकेत मिलता है । ये गाथाएँ भद्रबाहु प्रथम की प्रतीत होती हैं । निशीथ में एक स्थान पर उल्लेख मिलता है कि "एसा चिरतणा गाहा, एयाए चिर तणा गाहाए इमा भद्रबाहसामिकता गाहा"-इस उद्धरण से स्पष्ट है कि भद्रबाह द्वितीय से पूर्व उनके सामने समस्त नियुक्तियाँ थीं। पुरातण विशेषण भी प्राचीनता का द्योतक है अतः यह भी भद्रबाह का प्रथम सकेत देता है । ऐसा स भव लगता है कि नाम साम्य के कारण दोनों भद्रबाह में यह अंतर स्पष्ट नहीं हो सका।
४. "नय वक" के कर्ता मल्लबादी ५वी शती ने भी नियुक्तिगाथा का उद्धरण अपने ग्रंथ म दिया है । इससे भी नियुक्ति की प्राचीनता परिलक्षित होती है ।
५. उत्तराध्ययन शात्याचार्य टीका में उल्लेख है कि चतुर्दशपूर्वी नियुक्तिकार भद्रबाहु
नियुक्ति की रचना की गयी हो ऐसी आशका नहीं करनी चाहिए। इससे स्पष्ट हे कि प्रथम भद्रबाहु ने अत्यन्त संक्षेप में नियुक्तिया लिखी लेकिन बाद में उनको व्यवस्थित रूप भद्रबाहु द्वितीय ने दिया । क्योकि नियुक्तियों में अर्वाचीन आचार्य पादलिप्त कालकाचार्य आर्यवज्र, सिंहगिरि, सोमदेव, फल्गु रक्षित आदि का वर्णन बाद मे जोड़ा गया है । जैसे समवाओ और "ठाण' में भी अनेक प्रसंग बाद में जोड़े गए प्रतीत होते है ।।
६. मलघारी हेमचन्द्र ने उल्लेख किया है कि सूत्र रूप में गणधरी ने आग की रचना की तथा उसके गंभीर अर्थ केा व्यक्त करने हेतु साधु साध्विये। के हित के लिए चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु ने सामायिक आदि षट् अध्ययनों की नियुक्ति लिखी ।10 इसके अतिरिक्त चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु ने कल्प और व्यवहार सूत्र की रचना करके देशनों के सूत्रस्पर्शिक निर्यक्ति लिखी 111 क्षेमकीर्तिने भी इसी मत की पुष्टि की है।12
शीलांफने चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु को नियुक्तिकार माना है जो आठवीं शती के हैं ।13 भोधनियुक्ति द्रोणाचार्य टीका में भी इसका उल्लेख प्राप्त है 114
चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु नियुक्तिकार नहीं थे इसके समर्थन में सबसे प्रबल प्रमाण दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति की प्रथम गाथा 'वंदामि भदबाहु' का दिया जाता है । यदि स्वयं भद्रबाहु नियुक्तिकार होते तो स्वयं को नमस्कार केसे करते!'