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नियुक्ति की संख्या एवं प्राचीनता
पच्चक्खाण ६. असल्झाय , - ७. समोसरण , - ८. कप्पनिज्जुत्ती ,, - वृहत्कल्प दशाश्रुतस्कंध
पज्जोसवणाकप्प , - दशाश्रुतस्क धनियुक्ति १. "कम्पनिज्जुत्ती" दशाश्रुतस्कघ नियुक्ति के अन्तर्गत पर्युषणाकल्प की नियुक्ति तथा
बहरकल्प की नियुक्ति इन दोनों के लिए प्रसिद्ध हैं।
ईसके अतिरिक्त प्रत्येक आगम जिन पर नियुक्तियाँ लिखी गयी हैं उनके अलग अलग अध्ययनों के आधार पर भी नियुक्ति के अलग-अलग नाम मिलते है जैसे भाचारांग नियुक्ति में धुयनिज्जुत्तों और महापरिणानिज्जत्ती सत्थपरिणानिज्जत्ती आदि ।
वर्तमान में सूर्यप्राप्ति, ऋषिभाषित गोविंद और आराधना नियुक्ति अनुपलब्ध है ।
श्वेताम्बर परम्परा में महावीर-वाणी आज भी अगों के रूप में सुरक्षित है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन आगम ग्रंथों का लेप हे। गया । इसलिए नियुक्ति को विशाल भतराशि केवल श्वेताम्बर परम्परा में ही मान्य है । नियुक्ति की रचना बहुत प्राचीन है। क्योकि अनुयोग द्वार और नंदी जैसे मूल ग्रयों में भी इन गाथाओं का उल्लेख मिलता है।) कछ विद्वानों की मान्यता के अनुसार भद्रबाहु प्रथम नियुक्तिकार थे । मुनि श्री पुण्यबिजयजी ने अनेक प्रमाणों के आधार पर भप्रबाहु द्वितीय को नियुक्तिकार माना है ।
आज भी यह अनुसंधान का विषय है कि नियुक्ति साहित्य कितना प्राचीन है ? तथा इसके प्रथम रचनाकार कौन हुए ? यहाँ कुछ बिन्दु प्रस्तुत है जिनके आधार पर नियुक्ति की प्राचीनता जानी जा सकती है
१. निर्याक्ति आगमों की सर्वप्रथम प्राकृत पद्यमय व्याख्या है। नियुक्तियों पर भाष्य भी लिखे गए अतः दोनों के समय में पर्याप्त मंतराल होना चाहिए क्योंकि उस समय आज की भाँति प्रकाशन तथा प्रचार की सुविधा नहीं थी । मौखिक परम्परा या हस्तप्रतियों के आधार पर किमी भी ग्रंथ का ज्ञान किया जाता था । अतः यदि भद्रबाहु द्वितीय को नियुक्तिकार माने तो उसका समय छठी शताब्दी सिद्ध होता है जबकि भाष्यकार का समय कुछ विद्वानों ने चौथी-पांचधी शताब्दी सिद्ध किया है। इससे सिद्ध होता है कि नियुक्ति का समय दुसरी-तीसरी शताब्दी होना चाहिए । इतिहास अगरचदनी नाहटा का भी यही विचार था।
संबोधि वी. १२-५