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समणी कुसुमप्रशा
आवश्यक नियुक्ति में भद्रबाहु ने १० नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है । उनका क्रम इस प्रकार है
१. आवश्यक २. दशवकालिक ३. उत्तराध्ययन ४. आचारांग ५. सूचकृतांग ६. दशाश्रतस्कंध ७. वृहत्कल्प ८ व्यवहार ९. सूर्यप्रज्ञप्ति १०. ऋषिभासित ॥
हरिभद्र ने "इसिभासियाण च" शब्द की व्याख्या में देवेन्द्रस्तव आदि की नियुक्ति का भी उल्लेख किया है ।
इसके अतिरिक्त पिण्ड नियुम्ति, ओधनियुक्ति, पंचकल्पनियुक्ति, निशीथ नियुक्ति, माराधना नियुक्ति तथा ससक्त नियुक्त आदि का भी स्वतत्र अस्तित्व मिलता है।
विद्वानों के अनुसार ये क्रमशः दशवकालिक नियुक्ति, आवश्यक नियुक्ति, बहरकल्प नियुक्ति और आचारांग नियुक्ति को पूरक हैं ।
लेकिन एक विचारणीय प्रश्न है कि भोघनियुक्ति और विण्डनियुक्ति जैसी स्वतंत्र रचना को आवश्यक नियुक्ति और दशवकालिक नियुक्ति का पूरक कैसे माना जाय ? इस बारे में कुछ बिन्दुओ पर विचार किया जा सकता है१. दशवकालिक नियुक्ति में द्रव्य एषणा के प्रस'ग में कहा गया है कि यहां पिण्ड
नियुक्ति कहनी चाहिए । इसी प्रकार आचारांग नियुक्ति में ऐसा ही उल्लेख मिलता है। इससे स्पष्ट है कि भद्रबाहु ने पिण्ड नियुकित की रचना इन नियुकितयों से
पूर्व कर दी थी। २. मोधनियुक्ति और पिण्डनियुकित को कुछ जैन सम्प्रदाय ४५ आगमों के अन्तर्गत
मानते हैं । अतः इस बात से भी स्पष्ट होता है कि भद्रबाहु ने अन्य नियुकितयों से
पूर्व इसकी स्वतंत्र रचना की होगी। १. निशीथ नियुकित में पिण्डनियुकित की सैकड़ों गाथाएं हैं, इससे भी स्पष्ट है कि
भाचारांग नियुकित से पूर्व पिण्डनियुकित का अस्तित्व था ।
यह एक प्रारम्भिक चिंतन है, लेकिन अभी इस विषय में काफी खोज एवं बिचार विमर्श की आवश्यकता है।
ईसके अतिरिकत किसी स्वतंत्र विषय पर लिखी गयो नियुकित को भी मूलनियुक्ति से अलग करके उसका अलग नाम और स्वतंत्र अस्तित्व मिलता हैं । जैसे "आवश्यक नियुक्ति" एक विशाल रचना है । उसकी षट् अध्ययनों की नियुक्तियों का भी अलग अलग नाम से स्वतंत्र अस्तित्व मिलता है । नीचे कुछ नाम तथा उनका समावेश किस नियुक्ति में हो सकता है यह उल्लेख किया गया है
आवश्यक नियुक्ति
१. सामाझ्यनिज्जुत्ती २. लोगस्सुज्जोयरनिण्जुती ३. जमेक्किार ४. परिट्ठावणिया
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