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नियुक्ति की संख्या एष प्राचीनता
ईस प्रश्न के समाधान में यदि आगम साहित्य को देखे ते ज्ञात होता है कि मगलाचरण की परम्परा बहुत बाद की है । यदि कही है तो वह भी लिपिकर्ताओ द्वारा लिखा गया प्रतीत होता है।
दूसरी बात आचार्य भद्राहुने आवश्यक नियुक्ति में पंचशान के माध्यम से मंगलाचरण कर दिया अन्य नियुक्तियों के मंगलाचरण की गाथा द्वितीय भद्रछाहु या उनके बाद के आचार्यो द्वारा जोड़ी गयी प्रतीत होती है। इसकी प्रमाण है आचारांग और दशवकालिक के मगलाचरण की गाथाएँ । आचारांग नियुक्ति के मगलाचरण की प्रथम गाथा चूणि में व्याख्यात नहीं है तथा टीकाकार शीलांक ने 'अणुयोगद्वारों का अर्थ चतुर्दश पूर्वधर नियुक्तिकार किया है । दशवकालिक के मगलाचरण की गाथा भी अगस्त्य. सिंह और जिनदास द्वारा व्याख्यात नहीं है । इसके अतिरिक्त उत्तराध्यन, निशीथ आदि की नियुक्तियों में मंगलाचरण की गाथाए मिलती ही नहीं है। इस सब प्रमाणों से संभव लगता है कि मगलाचरण की गाथाएं द्वितीय भद्रबाहु की हैं। और सभव हे वदामि भह बाहवाली गाथा पंचकल्प भाष्य से लेकर प्रसंगवश दशाश्रुक'ध की नियुक्ति में जोड दी गयी है।। क्योंकि छेद सूत्रों की अन्य तीन नियुक्तियां निशीथ, व्यवहार और वृहत्कल्प तो भाष्य मे मिल गयी । यह स्वतंत्र नियुक्ति थी इसलिए यह गाथा लिपिकर्ताओं या बाद के आचार्यों द्वारा इस नियुक्ति में जोड दी गयी है। पंचकल्लभाष्य" में उस गाथा की प्रासंगिकता भी लगती है तथा व्याख्या भी मिलती है। इस विषय में और भी गहन चिन्तन की आवश्यकता है कि वास्तष में नियुक्तियाँ कितनी प्राचीन हैं ?
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि बीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी तक नियुक्ति साहित्य की रचना प्रारम्भ हो गयी थी। लेकिन वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तियों का व्यवस्थित रूप भद्रबाह द्वितीय द्वारा किया गया । इसका प्रबल प्रमाण है दशवकालिक की नियुक्ति । दशवैकालिक के प्रथम अध्ययन की नियुक्ति में टीकों और चूर्णि की नियुम्ति में लगभग १०० गाथाओं का अंतर है । अतः यह अंतर भी स्पष्ट करता है कि बाद में नियुक्तियों का संवर्धन किया गया ।
पाद टिप्पण :
१. आवनि ८८
२. सूटी प२, आटी पृ. २८ ३. आवहाटी प ३६३ ४. आवनि ८४